बुधवार, फ़रवरी 20, 2008

साला सब हंसकर निकल जाता है अपुन को अकेला चीखता छोड़कर

ये कायकू कैता है मेरे कू बोलने का नइ
अपुन नइ बोलेंगा तो और कोन बोलगा मेरे वास्ते
तू इदरीच आके मेरे कू जास्ती बोलने से रोकता है भिडु
कि ये साला भाई लोग जरूर खल्लास करेगा मेरे को किसी दिन


ये साले भंडुवे ठुल्ले रोज आकर वसूलते हैं अपना हिस्सा
और फिर भी दांत दिखाके कैसा एहसान दिखाता है नेता के माफिक
भाई तो कभी भी आ जाता है हफ्ता वसूलने पूरे लश्कर के साथ
अपुन कैसा चूतिया के माफिक खाली देखता रह जाता है,


ये भड़ुंवागिरी तो भिडु मरवाने से भी बुरा है
मगर सेठ लोग जो साला मार-मार के लोगों को माल बनाता है
और कमाठीपुरा में अपुन लोगों पर धौंस दिखाता है
कभी पोलिस का तो कभी नोटों के बंडल का ताबड़तोड़


ये जो पेज थ्री पार्टियों में डीलिंग करते हैं बड़े-बड़े धंधों का
हार्लिक्सी नस्ल की लौंडियों को पेश करके रोशनी के भीतर के अंधरे में
सेठ लोग ये साला बड़ी-बड़ी फैक्ट्री चलाता, पैसा बनाता और इज्जतदार हो जाता है
भंडुवागिरी करके वह साला समाज और सरकार दोनों का बाप बन जाता है


अब तो हमारा यह सरकारी और सामाजिक बाप
कमाठीपुरा को उजाड़ने का ले आया है आर्डर
चलाएगा बुलडोजर और साफ करके खेत बना डालेगा हमारी खोली को
जहां बननेवाले बड़े-बड़े मॉल में आएंगी बड़ी-बड़ी गाड़ियों में
बड़े-बड़े सेठों के घर में सप्लाई की जानेवाली हाई क्लास की सोशलाइटें


हमारा काम ताबड़तोड़ करेंगे सेठ लोग बिल्कुल पेशेवर की माफिक
दस पेटी, बीस पेटी माल इधर से उधर होगा मिनटों में
अपुन गटर के कीड़े की माफिक कुलबुलाते हुए जीने के लिए भी
गिड़गिड़ाता रह जाएगा और आक्खा मुंबई से बुहारकर फेंक दिया जाएगा


हमारा कौन-सा देश है भिडु
साला तुम भी नहीं बोलता कुछ


वह देश ढूंढकर ला दे मेरे कू सारे जहां से अच्छा गाता है
बच्चा लोग म्यूनिस्पेलिटी के स्कूल में
अपुन को न कोई जीते जी जीने देता न मरने पर श्मशान में जगह देता
जिंदगी भर साला हरामी, आवारा सुन-सुनकर लात खाते हुए जीना....


मैं पूछता हूं सेठों, भाई लोगों से और दांत निकाले नेता लोगों से
कहां है मेरा देश, कौन है मेरे जीने के अधिकारों का पहरूआ?


बोलता कोई नहीं, साला सब हंसकर निकल जाता है
अपुन को अकेला चीखता छोड़कर

1 टिप्पणी:

shashi ने कहा…

achi kavita hai. badhai.
shashi bhooshan dwivedi