शनिवार, फ़रवरी 23, 2008

उमा खुराना के कपड़े फाड़े और इज्जत भी मगर चुप हैं सब

होली आ रही है। मगर दिल्ली के वे लोग, जो अपनी बच्चियों को कथित रूप से अनैतिक होने से बचाना चाहते थे-ने भीड़ में मौका पाकर उमा खुराना को पतित करने में जरा भी देर नहीं लगाई। घोर नैतिक लोग मौके ढूंढते रहते हैं कैसे रंग लगाने के बहाने किसी नाजुक अंग पर हाथ साफ करने और रंग जमाने का मौका मिल जाए। इस डर से कई बार भौजाइयां दरवाजा ही बंद कर लेती हैं। मगर बिचारी उमा खुराना किसी तरह भी अपने कोमल अंगों को दबा-दबाकर मजा लेनेवाले भीड़ रणबांकुरों से अपना बचाव नहीं कर पाई। मामला फर्जी है या असली है इसे जाने बगैर जनता ने अपना इनसाफ करना शुरू कर दिया। उमा खुराना भीड़ के हत्थे चढ़ गईं और भीड़ ने कपड़े फाड़कर किस तरह समाज को अनैतिक होने से बचाया इसको बार-बार टी.वी. के वीरों ने दिखाया।

बाद में मामला सारा फर्जी साबित हुआ। उमा के मामले को लेकर जांच शुरू हुई और वह निर्दोष करार दी गई। मगर सरकार ने कहा कि हम बहाल नहीं करेंगे। क्यों भई। इस पर सब चुप। वक्त मगर बीतता रहा और इधर खबर आई है कि उमा की बहाली का आदेश निकल गया है। कई लोग समाज और मीडिया के नैतिक पुलिस द्वारा पहले ही दोषी करार दे दिये जाते हैं और जिंदगी भर के अपने मोहल्ले और अपने विभाग में मजाक का एक सामान भर बनकर रह जाते हैं।
भंवरी देवी का क्या हुआ? क्या हुआ दो-दो शौहर के पाट में पिसकर मर जानेवाली गुडि़या का? सरे बाजार इज्जत को नीलाम करने वाले नैतिकता के सारे सिपाही चुप हैं-समाज के, धर्म के और परम उत्साही मीडिया के लोग भी।

2 टिप्‍पणियां:

कुन्नू सिंह ने कहा…

सहि कहा आपने एक कड्वा सच है ये

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सही बात!