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गुरुवार, दिसंबर 17, 2009

आप कितना जानते हैं पंजाब और पंजाबियों को?

भारत में जब भी पंजाब या पंजाबी की बात होती है तो हम पूर्वी पंजाब के अलावा और कुछ सपने में भी नहीं सोच पाते? मगर क्या विभाजन के बाद पंजाब क्या वाकई पंजाब है? पंज-आब ही जब नहीं है तो फिर पंजाब किस बात का? बहुत बड़ा पंजाब पाकिस्तान में है और एक छोटा और पुछल्ला पंजाब भारत में। पांचों नदियां न उनके पास है, न हमारे पास. पर पंजाब को पंजाब वे भी कहते हैं और हम भी.


दोनों पंजाब की भाषा एक है, संस्कृति एक है, खान-पान एक है मगर धर्म, मुल्ला-मौलवी और ज्ञानियों ने ऐसी दीवार खड़ी कर दी है कि पता नहीं कब पंजाब को पंजाबीपन का संपूर्णता में एहसास होगा. पाकिस्तानी पंजाब में यह जानकर मुझे बहुत खुशी हुई कि देश विभाजन और धर्म परिवर्तन के बावजूद वहां के मुसलमान बिना किसी हिचक के अपना जो सरनेम लगाते हैं, वह जानकर आप एक पल को हैरत में पड़ जाएंगे।


पाकिस्तानी पंजाब के मुसलमानों का जो सरनेम मैंने सुना उनमें से कुछ सरनेम देखिए- रंधावा, साही, दुग्गल, सेठी, सूरी- बाजवा, सहगल, बग्गा, भट्टी, संधू, टिवाणा, वाही, पुरी, वोहरा, कोहली, बख्शी, मथारू, भोगल, विर्क, विर्दी, हांडा, सिद्धू, ग्रेवाल, चीमा, देओल, ओबेराय, टंडन, मल्होत्रा, मेहरा, गुजराल, सरना, चोपड़ा, खन्ना.

यानी शायद ही कोई सरनेम बचा हो जो आपने भारत में सुना हो वह यहां न मिले। अंतर बस इतना है कि इस सरनेम से पहले नाम किसी इमरान, इरफान या सलमान होता है.

लाहौर में जितनी पंजाबियत बची है वह शायद भारतीय पंजाब के किसी भी शहर में नहीं. लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में शेरे-पंजाब कुश्ती के दंगल में जितनी भारी भीड़ मैंने देखी वह कुश्ती के प्रति पंजाब की स्वाभाविक पारंपरिक उत्साह को साफ बयान कर रहा था. भारतीय पंजाब में यह परंपरा अब धीरे-धीरे मिट रही है. इधर के अधिकांश गांवों के लोग कनाडा और अमेरिकी चले गए हैं और उनकी पत्नियां उनकी राह देखती रहती हैं. किसी-किसी गांव में आप जवान लड़के देखने को तरस जाएंगे- जहां तक नजर जाएगी सिर्फ औरतें ही औरतें नजर आएंगी. यह जानकर दुख हुआ कि पाकिस्तानी पंजाब के गांवों की हालत भी बहुत कुछ इसी तरह की है. लड़के लाहौर, इस्लामाबाद भाग जाते हैं या सऊदी अरब. रह जाती हैं बस औरतें.

यह भी अजीब है कि सबसे ज्यादा भारत विरोधी भावनाएं पाकिस्तान के पंजाबियों में ही है, सबसे अधिक मांसाहारी, शराब के शौकीन और कट्टर पंजाबी मुसलामान ही है. इसके बावजूद वे बेहद यारबाश, सरल और पंजाबियत के प्रेमी हैं. हालांकि सेना और आईएसआई में पचहत्तर फीसदी लोग पंजाब सूबे से ही हैं.

काश, कभी वो दिन आता जब दोनों एक-दूसरे को उसी तरह देखते-सुनते और सुख-दुख में शरीक होते जैसे एकीकृत पंजाब में होते थे।