पंकज पराशर
नई दिल्ली हवाई अड्डे से बैरंग दुबई लौटा दिए गए पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी 'तहलका' संवाददाता शोभिता नैथानी से बातचीत में काफी खिन्न नज़र आए। उनके मुताबिक दोनों देशों के नेता लाशों पर राजनीति करते हैं।
आपको 16 साल पहले जारी हुए एक "लुकआउट नोटिस" (वांछित) के आधार पर वापस भेज दिया गया। आप को क्या लगता है, भारत सरकार ने ऐसा व्यवहार क्यों किया?
मुझे नहीं पता मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। ये भारत सरकार की ग़लती है न कि हिंदुस्तानी जनता या मीडिया की, वो तो मुझे बहुत प्यार करते हैं।
मुझे नहीं पता मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। ये भारत सरकार की ग़लती है न कि हिंदुस्तानी जनता या मीडिया की, वो तो मुझे बहुत प्यार करते हैं।
क्या आप इसके लिए दोनों देशों की सरकारों को जिम्मेदार मानते हैं क्योंकि दोनों ही क़ैदियों के मुद्दे पर विचार करने के लिए तैयार नहीं हैं?
अगर दोनों देशों की जेलों में क़ैदी 35-40 सालों से सलाखों के पीछे हैं तो दोनों देशों की सरकारें उनके लिए क्या कर रही हैं? अगर अंसार बर्नी अवैध रूप से जेलों में क़ैद बंदियों के लिए कुछ अच्छा कर रहा है, तो इसमें हर्ज़ ही क्या है? मैं सरबजीत सिंह का साथ इसलिए नहीं दे रहा हूं कि वो आतंकवादी है, बल्कि इसलिए क्योंकि उसकी केस फाइल से मुझे पता चला कि वो निर्दोष है।
आपको नहीं लगता कि आपकी अति सक्रियता से दोनों देशों की सरकारें असुविधा महसूस कर रही हैं, इसलिए ऐसा किया गया?
मैंने अपने कुछ हिंदुस्तानी पत्रकार मित्रों से सुना है कि पाकिस्तान भी इसमें शामिल था, और अब मैं इस पर यकीन से 'हां' कह सकता हूं क्योंकि पिछले चार दिनों में मैंने उनकी तरफ से कुछ नहीं सुना है। मुझे ये बात कहने का अफसोस है कि दोनों सरकारें इंसानियत में यकीन नहीं करतीं। उन्हें हिंदुस्तान में पाकिस्तानी और पाकिस्तान में हिंदुस्तानी क़ैदियों की लाशों से प्यार है क्योंकि वो इन्हीं लाशों पर राजनीति खेलना पसंद करते हैं।
आपने कश्मीर सिंह की रिहाई में अहम भूमिका निभाई, और अब सरबजीत की माफी के लिए प्रयास कर रहे हैं। क्या आप भारत सरकार की ओर से छला हुआ महसूस करते हैं?
मेरे ख्याल से ये भारत सरकार में मौजूद कुछ लोगों की ग़लती है जो दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्ते नहीं चाहते। इसलिए जब भी लोग मुझसे कहते हैं कि पाकिस्तान इसमें शामिल था और भारत उसके इशारे पर चल रहा था, तो मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि अगर ऐसा है तो दोनों देश एक दूसरे के बंदियों को रिहा क्यों नहीं कर देते? इससे सिर्फ यही बात साबित होती है कि ये सब नौटंकी है और वो लोग अपने नागरिकों को बेवकूफ बना रहे हैं। अगर भारत सरकार पाकिस्तान की इतनी सुन रही है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान किसका हो रहा है। भारत का।
गृह मंत्रालय ने बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि आपको वापस नहीं भेजा गया बल्कि अपूर्ण दस्तावेजों के चलते आपको "प्रवेश देने से इनकार" कर दिया गया। ये अधूरे दस्तावेज क्या थे?
सात हफ्ते पहले जब मैं भारत आया था तब भी मेरे पास यही कागजात थे। क्योंकि वो ये नहीं कह सकते थे कि पाकिस्तान ने हमसे बर्नी को वापस भेजने के लिए कहा, इसलिए उन्हें कुछ और तो कहना ही था।
सात हफ्ते पहले जब मैं भारत आया था तब भी मेरे पास यही कागजात थे। क्योंकि वो ये नहीं कह सकते थे कि पाकिस्तान ने हमसे बर्नी को वापस भेजने के लिए कहा, इसलिए उन्हें कुछ और तो कहना ही था।
मंत्रालय द्वारा तथाकथित "असुविधा" के लिए माफी मांग लेने के बाद क्या अब सब कुछ ठीक हो गया है?
बिल्कुल नहीं.. ये माफी नहीं है। अगर वो कह रहे हैं कि मेरे कागजात अधूरे थे तो फिर वो माफी क्यों मांग रहे हैं? मैं एक वकील हूं। मैंने पूरी दुनिया की यात्रा की है। क्या मैं इतना बड़ा मूर्ख हूं कि बिना दस्तावेज के ही भारत आउंगा?
क्या आप इस तिरस्कार का बदला लेना चाहते हैं? भारत सरकार से अब आप क्या चाहते हैं?
उन्हें मुझे मुआवजा देना चाहिए। मेरे टिकट की कीमत करीब दो लाख रूपए थी। मैं चाहता हूं कि भारत सरकार इस रकम को भारतीय जेलों में बंद क़ैदियों के बीच बांट दे, ताकि वो अपना जुर्माना भर सकें। अगर वो ये पैसा नहीं देना चाहते हैं तो उन्हें बंदियों की सज़ा दो महीने कम कर देनी चाहिए। पाकिस्तानी अख़बार मुझे भारत का एजेंट कहते हैं। ये देखते हुए तो भारत को मुझे और भी इज्जत देनी चाहिए थी।
क्या आप पाकिस्तान की जेलों में बंद भारतीयों के मामलों को उठाना जारी रखेंगे?
बिल्कुल, कोई भी मुझे रोक नहीं सकता, इसमें उनकी क्या ग़लती है?
(इस पोस्ट के बाद मेरे पाकिस्तान के संस्मरण जारी रहेंगे...)