शनिवार, जुलाई 26, 2008

कराची शहर के एक शमशान घाट में 100 से अधिक लोगों की अस्थियाँ गंगा नदी में विसर्जन के इंतज़ार में हैं.

यह सच है कि धर्म के नाम पर ही पाकिस्तान बना था और वहां तकरीबन पंचानबे प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है, लेकिन जनरल जिया उल हक के शासन काल से पहले तक पाकिस्तान इस्लामिक मुल्क नहीं था। जिया उल हक ने पहली बार सत्ता के लिए धर्म का इतना बड़ा इस्तेमाल किया था। वहां अच्छी-खासी आबादी हिंदुओं की भी है। उनकी हालत क्या है, यह बयान कर रहे हैं हमारे बेहद घनिष्ठ मित्र बी.बी.सी. के कराची संवाददाता जनाब हफीज चाचड़। हफीज की यह रिर्पोटिंग हम बी.बी.सी. से साभार ले रहे हैं.


पाकिस्तान में कराची शहर के एक शमशान घाट में 100 से अधिक लोगों की अस्थियाँ गंगा नदी में विसर्जन के इंतज़ार में हैं. कराची में गूजर हिंदू समुदाय शमशान घाट में ये अस्थियां रखी हुई हैं. जिन लोगों की ये अस्थियाँ हैं उनकी आख़िरी इच्छा थी कि अस्थियाँ गंगा में विसर्जित की जाएँ.
शमशान घाट के प्रबंधक महाराज महादेव ने बी.बी.सी. को बताया, “यह अस्थियाँ कम से कम 30 वर्षों से पड़ी हैं, इन लोगों के परिजन भारतीय वीज़ा न मिलने की वजह से अस्थियों को हरिद्वार के पास गंगा में विसर्जति नहीं कर सके.” उन्होंने बताया कि भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों के अनुसार हरिद्वार में कोई रिश्तेदार या जान पहचान वाला हो तभी वीज़ा मिल सकता है. महाराज ने कहा, “ऐसे कई लोग हैं जिनका हरिद्वार में कोई नहीं है, ये ग़रीब लोग बार-बार वीज़ा के लिए इस्लामाबाद जाने का ख़र्च बर्दाश्त नहीं कर सकते थे.”


अस्थियाँ कम से कम 30 वर्षों से पड़ी हैं, इन लोगों के परिजन भारतीय वीज़ा न मिलने की वजह से इन अस्थियों को हरिद्वार के पास गंगा में विसर्जति नहीं कर सके. शमशान घाट प्रशासन ने एक पत्र लिख कर हिंदू समुदाय को सूचित किया है कि 100 के करीब अस्थियाँ पड़ी हैं जिनके बारे में पता नहीं है कि यह किस परिवार की हैं क्योंकि इन मटकों पर नाम मिट चुके हैं. महाराज महादेव का कहना है कि अस्थियाँ विसर्जित करने के लिए मरने वालों के परिजनों का उपस्थित होना ज़रूरी है, इसलिए यह पत्र लिखा गया है.


1998 की जनसंख्या के अनुसार पाकिस्तान में करीब 24 लाख, 33 हज़ार हिंदू है और पिछले 10 सालों में हिंदुओं की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. हिंदू समुदाय अधिकतर सिंध प्रांत में रहते हैं. पाकिस्तान हिंदू परिषद के सदस्य हरी मोटवाणी ने बताया, “जो ग़रीब लोग भारत नहीं जा सकते, वह अपने परिजनों की अस्थियाँ सिंधू नदी में विसर्जित करते हैं.” उन्होंने कहा कि ज़रूरी नहीं है कि अस्थियों को भारत में ही विसर्जित किया जाए और यह तो परिवारजनों की मर्ज़ी पर निर्भर करता है. पिछले कई सालों से भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में बहतरी के कारण वीज़ा नीति में नर्मी हुई है.


इसी साल भारत से कई लोगों की अस्थियाँ ला कर सिंधू नदीं में विसर्जित की गई हैं जिनमें सिंधी साहित्यकार हरी मोटवाणी और सुप्रसिध गांधीवादी निर्मला देशपांडे शामिल हैं. हिंदू परिषद के सदस्य हरी मोटवाणी के अनुसार आजकल भारत सरकार आसानी से वीज़ा जारी कर रही है लेकिन कुछ दिक्कतें ज़रूर हो रही हैं. उल्लेखनीय है कि शमशान घाट के प्रशासन ने इन अस्थियों के विसर्जन के लिए भारत सरकार से सपंर्क किया है. महाराज महादेव का कहना है कि यदि भारत सरकार की अनुमति मिल गई तो इन अस्थियों को गंगा नदी में विसर्जित किया जाएगा. उन्होंने पाकिस्तान सरकार से मांग की है कि वह इन अस्थियों के विसर्जन के लिए भारत सरकार से अनुरोध करे.

3 टिप्‍पणियां:

admin ने कहा…

ये वाकई दुखद एवं विचारपरक घटना है। इसपर भारत सरकार को कुछ करना चाहिए।

आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

पंकज जानकारी के लिए आपका आभार

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आस्‍था के साथ खिड़वाड नही होना चाहिये।