शुक्रवार, दिसंबर 11, 2009

भक्तिकाल या अनंतकाल वाया उत्तरकाल


यह कोई लोकसभा नहीं है जहां प्रश्नकाल होता हो और प्रश्नकाल जब फलप्रद-काल न हो तो वह अनुपस्थित-काल में बदल जाए। अजीब बात है कि साहित्यिक इतिहासों में भक्तिकाल को इतिहास के मध्यकाल से जोड़कर देखा जाता है, जबकि यह ऐसा काल है जो आज पहले से कहीं अधिक प्रतिबद्धता और निष्ठा से जारी है। सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी की तरह यदि आप ऐसे ही गीत गाते रहे तो रियल लाइफ में जीना मुहाल हो जाएगा। क्योंकि जीने के लिए चाहिए होती है भक्ति-प्रदर्शन और इसी के प्रदर्शन से मिलती से जीवन में शुभ-लाभ। भक्ति से पत्नी से लेकर बॉस तक प्रसन्न रहते हैं और शुभ-लाभ, योग-क्षेम मिलती रहती है। भक्ति से ही शक्ति मिलती है और शक्ति के अनुपात से आदर मिलता है। सो, शक्ति कुछ लोग भक्ति से तो कुछ लोग छीनकर प्राप्त करते हैं।

न जाने क्यों मुझे जीवन के हर कदम पर, हर दिन बार-बार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी याद आते हैं। उनकी लिखी पंक्तियां याद आती हैं और याद आता है कुटज जो सिर उठाकर जीता है...पर भगवान को उठा हुआ सिर पसंद है? भक्तिकाल के आराधकों को शायद पता हो।

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