शुक्रवार, जनवरी 29, 2010

यारब! ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिये

दाइ म [1] पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे के पत्थर नहीं हूँ मैं

क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम[2] से घबरा न जाये दिल
इन्सान हूँ, पियाला-ओ-साग़र[3] नहीं हूँ मैं

यारब! ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिये
लौह-ए-जहाँ[4] पे हर्फ़-ए-मुकर्रर[5] नहीं हूँ मैं

हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत[6] के वास्ते
आख़िर गुनाहगार हूँ, काफ़िर नहीं हूँ मैं

किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे
लाल-ओ-ज़मुर्रुदो--ज़र-ओ-गौहर [7]नहीं हूँ मैं

रखते हो तुम क़दम मेरी आँखों से क्यूं दरेग़
रुतबे में मेह्र-ओ-माह से कमतर नहीं हूँ मैं

करते हो मुझको मना-ए-क़दमबोस[8] किस लिये
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं

'ग़ालिब' वज़ीफ़ाख़्वार[9] हो, दो शाह को दुआ
वो दिन गये कि कहते थे "नौकर नहीं हूँ मैं


" शब्दार्थ:

1. हमेशा
2. हमेशा की चिंता
3. जाम
4. संसाररूपी पृष्ठ
5. बार बार लिखा हुआ शब्द
6. कष्ट
7. लाल,पन्ना,सोना और मोती
8. पैर छूने से मना
9. वृति (पेंशन) पाने वाला

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