गुरुवार, नवंबर 11, 2010

चिर काल तक यह जीवन फलता-फूलता रहेगा

बहुत दिन हुए....बहुत दिन हुए खुद के ही ब्लाग को देखे हुए. वक्त गुजरता गया और गुजरते वक्त ने कभी इतनी मोहलत नहीं दी कि मुड़कर इधर आ सकूं. पर देर आयद दुरुस्त आयद. आज आया. ...और आते ही भाई यादवेन्द्र जी ने यह कविता उपलब्ध करवाई है और वादा किया है कि अब वे निरंतर ख्वाब का दर पर दस्तक देते रहेंगे. तो लीजिए लंबे अरसे बाद आज इब्तिदा कीजिए, इस कविता से.....


बेटे को लिखा आखिरी ख़त

- नाजिम हिकमत


एक झटके से जल्लाद मुझे तुमसे अलग कर देगा
ये अलग बात कि मेरा सड़ा हुआ दिमाग
भरता रहता है मेरे दिमाग में अनहोने खुराफात ...
मेरे कार्ड में साफ़ साफ़ लिखा हुआ है
कि मैं अब कभी नहीं देख पाऊंगा तुमको.


यहाँ बैठे बैठे देख पाता हूँ
जवान होने पर तुम लगोगे बिलकुल
खेत से कटे हुए गेंहूँ के पुलिंदों की तरह
लम्बे छरहरे और सुनहरे बालों वाले..
जैसा मैं दिखता था अपनी जवानी में.
तुम्हारी आँखें बड़ी बड़ी होंगी
बिलकुल अपनी माँ जैसी
और धीरे धीरे तुम धीर गंभीर होते जाओगे
पर तुम्हारा माथा दूर से भी दमकेगा आभा से..


तुम्हारी वाणी अच्छी रोबीली निकल कर आएगी
मेरी तो बिलकुल ही बुरी थी...
और तुम गाया करोगे खट्टे मीठे
जीवन के ह्रदयविदारक गीत.
तुम्हे ढंग से बातचीत करने का सलीका आ जायेगा--


मैं तो अपने दिनों में जब ज्यादा विकल नहीं होता था
जैसे तैसे अपना काम चला लिया करता था.
तुम्हारी कृतियाँ शहद जैसा रस घोलेंगी
जब तुम्हारे कंठ से निकल कर बाहर आएँगी.


हां...ममेत
अल्हड लड़कियां तो तुम्हे देख कर
जूनून से बस पागल ही हो जाएँगी.
एहसास है मुझे


कितना भारी पड़ता है पालना
किसी बच्चे को बगैर पिता के.
अपनी माँ से प्रेम से पेश आना मेरे बच्चे
मैं नहीं दे पाया उसको खुशियाँ और सुख
पर तुम दिल से इसकी कोशिश करने
भरपूर...ईमानदार.
तुम्हारी माँ रेशम के धागों की मानिंद
शक्तिशाली और कोमल स्त्री है.


दादी बनने के बाद भी
वह उतनी ही खूबसूरत लगेगी
जैसी पहली बार में मुझे लगी थी
सत्तरह साल की कमसिन उम्र में.
वह सूरज सी दीप्तिमान भी है
और चन्द्रमा जैसी शीतल भी.
मुलायम चेरी की तरह है उसका दिल
यथार्थ में ऐसा ही है असल उसका सौंदर्य.


एक दिन सुबह सुबह
तुम्हारी माँ ने
और मैंने
अलविदा कहा एक दूसरे को
मन में ये उम्मीद लिए हुए
कि हम फिर मिलेंगे जल्दी ही
पर ये हमारे नसीब में नहीं लिखा था मेरे बेटे
फिर हमारा मिलना हो ही नहीं पाया कभी भी.
इस दुनिया में सबसे स्नेहिल और सुव्यवस्थित है
तुम्हारी माँ...


खुदा करे वो सौ साल जिए.
मैं भयभीत नहीं होता हूँ मौत से
फिर भी आसान नहीं है
कई कई बार ऐसे ही सिहर जाना
अपने हाथ में लिए काम के संपन्न हुए बगैर ही.
सांस छूटने से पहले एक एक दिन गिनने लगना
अपने नितांत एकाकीपन में.
मैं तुम्हे कभी नहीं दे पाया
एक भरीपूरी मुकम्मल दुनिया


ममेत..
कभी भी नहीं मेरे बच्चे.
ध्यान रखना मेरे बेटे
इस दुनिया में ऐसे कभी मत रहना
जैसे मेहमान बनकर रह रहे हो किसी किराए के घर में
गर्मी से बचने को महज कुछ दिनों के लिए...


इसमें इस ठाठ के साथ रहना
जैसे ये तुम्हारे बाप का खानदानी घर हो.
बीज,धरती और सागर पर भरपूर भरोसा रखना
पर सबसे ज्यादा भरोसा रखना
अपने लोगों के ऊपर.
बादलों,मशीनों और किताबों से बेपनाह प्यार करना
पर सबसे ज्यादा प्यार
अपने लोगों से करना.


कुम्हला जाने वाली डालियों के लिए
टूट जाने वाले तारों के लिए
और चोटिल जानवरों के लिए
पसीज कर मातम मनाना
पर इन सब से ऊपर रखना
अपने लोगों के लिए महसूस
संवेदना और साझापन.


धरती की एक एक अनुकम्पा पर
झूमकर आह्लादित और आनंदित होना मेरे बच्चे...
चाहे वह अन्धकार हो या प्रकाश
चारों में से कोई भी मौसम हो
पर कभी न भूलना सबसे ऊपर
अपने लोगों को सिर आँखों पर रखना.


ममेत
हमारा तुर्की
बेहद प्यारा और मनमोहक देश है
और इसमें रहने वाले लोग
अनन्य परिश्रमी,गंभीर और बहादुर लोग हैं
पर अफ़सोस मेरे बेटे
ये सदियों से सताए हुए,त्रस्त,भयभीत और निर्धन लोग हैं.
जाने कितने सालों से टूटी हुई है
इनपर कमर तोड़ देनेवाली भारी बिपदा
पर अब ज्यादा दूर नहीं मेरे बेटे
अच्छे भरे पूरे दिन.
तुम और तुम्हारे लोग मिलकर
निर्मित करेंगे कम्युनिज्म...


तुम कितने किस्मत वाले हो कि यह सब
अपनी आँखों से तुम देख पाओगे
और छू पाओगे इसको अपने हाथों से.


ममेत
मैं बेकिस्मत मर जाऊँगा यहाँ
इतनी दूर अपनी भाषा से
और अपने गीतों से
मेरे नसीब में नहीं
अपनी माटी का नमक और रोटी..
बारबार मन घर की ओर भागने लगता है
कातर भी हो रहा है तुम्हारे लिए
तुम्हारी माँ के लिए
दोस्तों के लिए
अपने तमाम लोगों के लिए..
पर इतना भरोसा है
कि मैं निर्वासन में नहीं मरूँगा
दूसरे अनजान देश में नहीं मरूँगा
मरूँगा तो बस
अपने स्वप्नों में सजाये देश में मरूँगा


अपने सबसे हसीन दिनों में
देखा था सपना रौशनी में नहाये जगमग शहर की बाबत
भरोसा है वहीँ पहुँच कर अंतिम सांस लूँगा.


ममेत..मेरे प्यारे बच्चे
तुम्हारी आगे की परवरिश अब मैं सौंप रहा हूँ
तुर्की की कम्युनिस्ट पार्टी को..
मैं अब प्रस्थान कर रहा हूँ
चिरंतन शांति के लोक में
मेरे जीवन का अब लौकिक अंत हो रहा है
पर ये आगे भी जारी रहेगा यथावत
तुम्हारे जीवन के लम्बे सालों में...
हाँ , चिर काल तक यह जीवन फलता फूलता रहेगा
हमारे अपने लोगों के जीवन में.


प्रस्तुति एवं अनुवाद :यादवेंद्र

2 टिप्‍पणियां:

परमेन्द्र सिंह ने कहा…

बेशक उद्वेलित करती कविता. यादवेंद्र जी का अनुवाद हमेशा की तरह मूल भाषा की आत्मीयता का संस्पर्श करता हुआ. संघर्ष को विरासत में सौंपती और भविष्य की उम्मीद से भरी कविता के लिए आभार.

ZEAL ने कहा…

बेहतरीन कविता ।