इब्दिता फिर वही कहानी की
-मीर तकी मीर
दोस्तो,एक तबील अरसे के बाद फिर चिट्ठाकारी की उसी दुनिया में लौटा हूं जिससे कुछ वक्त के लिए मैं गायब था. वक्त-वक्त की बात है. वक्त ऐसा भी इनसान पे कभी आता है कि छोड़कर साथ साया भी चला जाता है.इनसान का इम्तहान उसी वक्त होता जब वह अपनी जिंदगी के सबसे मुश्किल भरे दौर से गुजर रहा होता है.आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने एक जगह कहा कि ज्ञान के क्षेत्र में सबसे कठिन दुर्ग का विजय ही असली विजय माना जाता है.मगर इनसान कुछ भी है तो है आखिरकार इनसान ही. घबराना और घबराकर चिंतित हो जाना उसकी ज़ाती फितरत है.फिर यह भी कि वक्त से जिसे डर नहीं लगता वह उसकी कीमत तो चुकाता है लेकिन वक्त को अपनी ओर मोड़ता भी वही है. अगली कहानी कल. आमीन.
1 टिप्पणी:
आपने अपने फीड को इनेबल नही किया है शायद।
ये देखिए
http://khwabkadar.blogspot.com/feeds/posts/default
इसको ब्लॉग की सैटिंग से इनेबल करिए, अथवा आपका ब्लॉग किसी भी एग्रीगेटर मे नही जु़ड़ सकेगा।
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