कल खोई नींद जिससे मीर ने
इब्तिदा फिर वही कहानी की
वक्त मिला तो अब फिर से कुछ वक्त ब्लाग को. ब्लागियानेवाले दोस्तों से गपशप को. इधर नये सिरे से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए दिन-रात जो लोग अखबारों, मंचों पर हलकान होते रहते हैं, माला जपते रहते हैं-उनके वे चेहरे फिर-फिर देखे.लाहौल विला कुवत.
बहुत कुछ इस बीच देखा किया इस बीच...
जिया मगर अपने ढंग से, मन से इस बीच.
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