बुधवार, जून 11, 2008

आखिरकार मैंने क्यों वहां जाने के बारे में सोचा?


नींद आ नहीं रही थी और बिस्तर पर लेटे-लेटे ऊब होने लगी थी. रात के तकरीबन डेढ़ बज रहे थे यानी घर से साढ़े तीन तक हर हाल में बस टर्मिनल के लिए मुझे रवाना हो जाना था. कुल एक-डेढ़ घंटे का ही वक्त मेरे पास था. सोचा कुछ पढ़ा जाए या कल कोरियर से एक पाकिस्तानी मित्र उज्मान अली ने जो कैसेट भेजी है वही सुनूं. छोटे से म्यूजिक सिस्टम में बेगम आबिदा परवीन की सी.डी. लगाकर बाथरूम के रैक पर रख दिया और अंदर से बाथरूम बंद कर लिया ताकि मेरी वजह किसी को असुविधा न हो. आबिदा परवीन की इस सी.डी. में सिर्फ मिर्ज़ा ग़ालिब की गजलें हैं जिसे उन्होंने अपने मलंग सूफियाना अंदाज में गाया है. बहरहाल, आबिदा को सुनते हुए मैंने ब्रश किया, स्नान किया, तैयार हुआ, पैकिंग की और साहब इतना कुछ करते-करते बस टर्मिनल रवानगी का वक्त हो गया.

ठीक चार बजे मैं बस टर्मिनल पहुंच चुका था. अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम के बीच दिल्ली पुलिस के जवानों ने हमारी चैकिंग शुरू की. पहले बैग में रखी एक-एक चीज का मुआयना किया, मेटल डिटेक्टर से शरीर की तलाशी ली, फिर पासपोर्ट-वीजा चैक किया, सामान का वजन किया, उस पर स्टिकर लगाया और साहब इतने तरह के सवाल इतने लोगों ने इतनी जगह पूछा वहां जाने के अपने फैसले को लेकर मुझे पश्चाताप होने लगा। मुझे लगा कि आखिरकार मैंने क्यों वहां जाने के बारे में सोचा? मुझे लगता है सुरक्षा अधिकारियों का आम मासूम यात्रियों के साथ जैसा रवैया रहता है उसकी वजह से उनके मन में भी यह खीज जरूर उठी होगी कि क्यों उन्होंने भारत या पाकिस्तान में अपने रिश्तेदारों से मिलने की जहमत मोल ले ली. तत्क्षण जो बात मुझे समझ में आई कि दोनों देशों के ब्यूरोक्रेट्स दिल से यह नहीं चाहते कि दोनों मुल्कों के दरम्यान रिश्ते सुधरे और दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के यहां आएं-जाएं. मेरे ख्याल से उनका ज्यादा-से-ज्यादा जोर इस पर रहता है कि लोगों को इतना हतोत्साह करो कि जो एक बार आ जाए वह दोबारा आने-जाने की हिम्मत न जुटा सकें.


खैर साहब, हमारी बस चल पड़ी. बेहद खराब माइक, जिससे की गई उदघोषणा का कोई-कोई शब्द ही हमारे पल्ले पड़ रहा था. खबातीनो-हजरात...और लाहौर...के अलावा कोई शब्द मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था. बस जब चली तो बस के आगे-आगे दिल्ली पुलिस की एक गाड़ी रोड क्लियर कराने के लिए सायरन देती हुई आगे चल रही थी और दूसरी पीछे. सिंधु बोर्डर से बस जैसे ही हरियाणा में घुसी तो दिल्ली पुलिस के जवानों की गाड़ी पीछे छूट गई और पहले से इस बस के इंतजार में तैयार खड़ी हरियाणा पुलिस की गाड़ी प्रोटेक्शन के लिए इस बस के साथ हो गई. थाने बदलते जाते थे और गाड़ियां बदलती जाती थी. कुरुक्षेत्र जिले की सीमा में जब बस घुसी तो एक अनपढ़, बेहद दुबला-पतला और पुलिस की खौफ से शायद अनजान मिनी ट्रक के ड्राइवर ने साइड देने में देर की तो ताकत के नशे में चूर पाकिस्तान के ड्राइवर ने बस से उस मिनी ट्र को ओवरटेक किया और उस ड्राइवर को बुरा-भला कहना शुरू किया. ड्राइवर का इतना कहना था कि आगे-पीछे लगी पुलिस की गाड़ियों से सारे पुलिसवाले उतर आए और उसके ट्रक का शीशा तोड़ दिया. ड्राइवर बेचारा सहमकर माई-बाप कहने लगा और माफी मांगने लगा मगर पुलिस के जवानों ने कोई दया दिखाये बगैर उसको पीट-पीटकर अधमरा कर दिया और जब उन्हें लगा कि पुलिसिया ताकत का सही रौब गालिब हो गया होगा तब कहा-चलो. बस फिर चल पड़ी.
(जारी.....)

4 टिप्‍पणियां:

PD ने कहा…

पढ़ने को तैयार..
आप लिखें..

हरिमोहन सिंह ने कहा…

आपकी बस जरा धीरे धीरे चल रही है । थोडा तेज चलायें । अगर आगे कोई है जो आपको रास्‍ता नहीं दे रहा है तो उसके हाथ पैर तोड कर निकल जायें

Pankaj Parashar ने कहा…

बस अब बोर्डर पर पहुंचने ही वाली है हरिमोहन जी. बोर्डर पार करते ही हम लाहौर पहुंच जाएंगे और तब आपको किस्सा-ए-पाकिस्तान की एक-एक तफसील बताएंगे.

Udan Tashtari ने कहा…

बेचारा मिनी ट्रक वाला-किससे पंगा ले बैठा. जारी रहिये, आनन्द आ रहा है.