सोमवार, मार्च 05, 2007

पेट की भूख ने इनको कई विदेशी भाषाएं सिखा दी हैं


बच्चे कभी-कभी विदेशी पर्यटकों को रास्ता बताने का काम भी करते हैं
"ओला कोमा एस्तास? तेमेर हांड्रे."
"हेलो, आप कैसे हैं? मुझे कुछ खाना दीजिए." विदेशी जुबान में बोले गए इन वाक्यों को सुनकर बरबस ही उसकी ओर ध्यान चला जाता है.

वह राजू है. जो स्पैनिश बोल लेता है. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में विदेशी सैलानियों के प्रमुख ठिकाने सदर स्ट्रीट में 10 से 16 साल के ऐसे कई बच्चे धड़ल्ले से अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन समेत कई विदेशी भाषाएं बोलते मिल जाएंगे.

इनमें लड़के भी हैं और लड़कियां भी. इनमें से ज्यादातर ने कभी स्कूल का चेहरा नहीं देखा. रहने के लिए न तो सिर पर कोई छत है और न ही दो जून की रोटी का ठिकाना.

लेकिन पेट की भूख ने इनको कई विदेशी भाषाएं सिखा दी हैं. इनका काम है महानगर में आने वाले विदेशी सैलानियों से उनकी भाषा में बात करके भीख मांगना.

पढ़ाई

13 साल की मुन्नी बीते चार-पांच वर्षों से यही करती है. मुन्नी, राजू और उनके जैसे दर्जनों बच्चे कभी-कभी इन विदेशियों के लिए गाइड का भी काम करते हैं.


पैसा माँगने में विदेशी भाषा काम आती है

महानगर में सदर स्ट्रीट स्थित होटल यहां आने वाले विदेशी सैलानियों की पहली पसंद हैं. इसकी वजह यह है कि वहां सस्ते कमरे मिल जाते हैं.

मुन्नी बताती है कि "विदेशियों से उनकी भाषा में बात करने पर भीख के तौर पर ज्यादा पैसे मिलते हैं." वह फ्रेंच के अलावा अंग्रेजी और स्पेनिश में काम चलाने लायक बातचीत कर लेती है.

राजू ने दूसरी कक्षा तक पढ़ने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. दूसरे लोगों की देखा-देखी उसने भी विदेशी भाषाएं सीख कर यही काम शुरू कर दिया.

12 साल का जयंत भी दिन भर विदेशियों से कभी जर्मन तो कभी अंग्रेजी में बात कर अपने खाने-पीने का जुगाड़ कर लेता है. वह कहता है कि "काम कठिन जरूर है. लेकिन पेट की आग ने हमें कई भाषाएं सिखा दी हैं."

इस बीच, एक विदेशी जोड़े को देख कर वह उधर लपक लेता है- "हेलो अंकल, हाऊ आर यू डूइंग? आई एम हंगरी. प्लीज गिव मी सम मनी टू ईट."

उनसे पांच का एक नोट मिलने के बाद वह फिर ‘थैंक्यू’ कह कर लौट आता है.

पूरे दिन में कितनी कमाई हो जाती है? इस सवाल पर वह बताता है कि "यह लोगों पर निर्भर है. कभी कोई दरियादिल व्यक्ति मिल जाए तो सौ रुपए तक दे देता है."

राजू कहता है कि "जो जितनी भाषाएँ बोल सकता है, उसकी कमाई भी उतनी ही ज्यादा है. इसके अलावा खरीददारी में मदद करने पर भी कुछ बख्शीश मिल जाती है. कुल मिला कर खाना-पीना चल ही जाता है."

यह कहते हुए वह विदेशियों के एक और ग्रुप की ओर बढ़ जाता है.

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कोलकाता.कॉम

1 टिप्पणी:

ghughutibasuti ने कहा…

न इसे रोका जा सकता है न इसका कोई इलाज नजर आता है ।
घुघूती बासूती