सोमवार, नवंबर 12, 2007

कब तक देखो और इंतजार करो?


पाकिस्तान में आपातकाल की घोषणा के बाद मार्शल लॉ लागू होते ही लोगों की प्रतिक्रियाएं ब्लाग पर सरकार के खिलाफ आने लगी. अभिव्यक्ति के इस नये माध्यम से सैनिक हुकूमत बहुत ज्यादा घबरा गई. सैनिक शासन में जब हर जगह फौजां ही फौजां की मौजूदगी हो तो कुछ भी तय करने का हक लोगों के पास नहीं रह जाता. अब तक जिन एशियाई देशों में सेना ने सत्ता पर कब्जा किया है वहां-वहां लोगों का अनुभव ऐसा ही रहा है.हमारे तमाम पड़ोसी देशों यथा पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश आदि में सैनिक हुकूमत का यही रवैया रहा है. श्रीलंका और नेपाल जिस नक्शे-कदम पर चल रहा है वह भी हमारे लिए एक सीख की तरह है. अपने पड़ोस में तमाम असफल देशों से जिस तरह भारत घिरता जा रहा है वह ज्यादा दिनों तक देखो और इंतजार करो की विदेश से नीति पर टिके रहने को मुमकिन नहीं रहने देगा.



आंग सांग सू ची, बर्खास्त चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी, माओवादी नेता प्रचंड सब अपने-अपने स्तर पर अपने मुल्क की बेहतरी के लिए लड़ रहे हैं. सू ची, दलाई लामा आदि ने तो अपना पूरा जीवन ही अपने मुहिम के लिए होम कर दिया है. भारत की इरोम शर्मिला पिछले कई वर्षों से भूख हड़ताल पर है और सरकार उनकी मांग पर विचार करने के बदले उन्हें तरह-तरह से परेशान करने में लगी हुई है. तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे को लेकर एक समय पूरे भारत के युवाओं में विरोध का मुखर स्वर देखा जा सकता था, आज वह नदारद-सा दीखता है.



ख्वाब का दर जल्दी ही इन देशों के संघर्षधर्मी चेतना संपन्न साहित्य को लाने का प्रयास करेगा. इन देशों की संस्कृति, साहित्य और कला पर पड़े प्रभावों पर अब सीरिज में जानकारियां यहां देखी जा सकेगी. धन्यवाद.