रविवार, सितंबर 16, 2007

कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है

चचा गालिब ने बहुत पहले इस चीज की भांप लिया था कि-
बेखुदी बेसबब नहीं गालिब,
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है.


मैं नहीं जानता कि वह कुछ क्या है जिसके कारण हिंदी ब्लाग की दुनिया में बेहद सक्रिय कुछ दोस्तों को अपना नाम छिपाने के लिए मजबूर करती है? क्या सामने से लड़ने का साहस नहीं होने के कारण वे छिपकर वार करना ज्यादा मुफीद समझते हैं? क्या वे इस वहम में जीते हैं कि कथित स्टिंग आपरेशन की तरह उनके लिए भी साध्य पवित्र है, साधन चाहे लाख अपवित्र हो?


अजीब उलझन है कि लोग आदिविद्रोही, धुरविरोधी, पंगेबाज, घूघूती-बासूती वगैरह-वगैरह नाम रखकर हिंदी चिट्ठाकारिता की दुनिया में चरित्र प्रमाण पत्र बांटने का कथित पवित्र काम आपने हाथ में लेकर संशय, हिंसा और असहिष्णुता का माहौल बनाना चाहते हैं. याद रहे कि हिंदी के फक्कड़ मिजाज के विद्वान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा में एक जगह लिखा है कि डरना किसी से भी नहीं, गुरू से भी नहीं, मंत्र से भी नहीं तब फिर मेरे ब्लागर भाई यह क्यों सोचते हैं बिना कोई मूल्य चुकाये हम सत्य को प्राप्त कर लें?यह मत भूलिये कि सत्य अपना पूरा मूल्य चाहता है. झूठ के सिक्के से शायद सच को कभी हम खरीद ही नहीं सकते.

3 टिप्‍पणियां:

Jitendra Chaudhary ने कहा…

वो इसलिए कि छिपकर वार करना ज्यादा आसान रहता है।

मै मानता हूँ कि किसी की व्यवसायिक मजबूरियां हो सकती है, लेकिन ये सिर्फ़ अपवाद स्वरुप ही है। अक्सर मैने देखा है, फर्जी नाम का प्रयोग करने वाले ज्यादा आक्रामक होते है यानि फर्जी नाम दूसरों पर वार करने के लिए ही अपनाया जाता है। ऐसे लोग चिट्ठाकारी को अपनी मस्ती के लिए प्रयोग करते है, सीरीयसली नही लेते। अक्सर किसी भी झगड़े/विवाद की स्थिति मे अक्सर ये बड़बोले या आक्रामक बन जाते है, जाहिर है कोई जवाबदेही तो है नही, इसलिए बिन्दास बोले जाओ।

इस तरह से फर्जी नाम से लिखने की प्रथा गलत है, लेकिन फिर भी आप/हम किसी भी चिट्ठाकार को फर्जी नाम से लिखने से रोक तो सकते नही, इसलिए लिखने दो। नही तो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता वाले झंडा लेकर आ जाएंगे।

बेनामी ने कहा…

आपका सोचना एकदम सही है;
आदिविद्रोही, धुरविरोधी, पंगेबाज, घूघूती-बासूती वगैरह-वगैरह नाम रखकर हिंदी चिट्ठाकारिता की दुनिया में चरित्र प्रमाण पत्र बांटने का कथित पवित्र काम आपने हाथ में लेकर संशय, हिंसा और असहिष्णुता का माहौल बनाना चाहते हैं|
झूठ के सिक्के से शायद सच को कभी हम खरीद ही नहीं सकते.

Divine India ने कहा…

अपने-आप में यह लेख बहुत कलई खोल गया चिट्ठाकारीता का… बेहतरीन सोंच है आपका बहुत सुंदर …।