गुरुवार, फ़रवरी 14, 2008

पागल को पागल कौन बनाता है हुजूर?

क्या आपने किसी पागल को सांप हाथ से पकड़ते देखा है? क्या आपने किसी पागल को किसी ट्रक के नीचे आते देखा है? आग में हाथ डालते देखा है? कोई पागल किसी माल नहीं हड़पता है साहब, किसी की जेब नहीं काटता है जनाब? किसी की चुगली नहीं करता है, किसी के चरित्र हनन के लिए अफवाहें नहीं फैलाता है। तब ऐसा क्या है जो सामान्य लोगों की कथित दुनिया के सामान्य मनुष्य को पागल नामक फ्रेम में फिट करके खुश होती है और ताली पीट-पीटकर सामान्य होने के अपने अहं को तुष्ट करके खुद का मनोरंजन करती है?


फ्रेंच विचारक मिशेल फूको ने अपनी किताब मैडनेस एंड सिविलाइजेशन में कई सवाल उठाये हैं और दुनिया से पूछा है कि कोई भी पैदा एक पागल के रूप में नहीं होता? अत्यंत संवेदनशील मनुष्य ही पागल होता है और हमारा कथित सभ्य समाज किस तरह एक तेज दिमाग को बर्दाश्त नहीं कर पाता, इसकी मिसालें दुनिया भर में मौजूद आधुनिक मानसिक अस्पताल।



मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि हमारे समय के सर्वाधिक ओजस्वी कवि निराला क्यों पागल हो गए। बर्तोल्त ब्रेख्त क्यों पागल हो गए? काजी नजरूल इस्लाम क्यों पागल हो गए? क्यों भुवनेश्वर जैसा प्रचंड प्रतिभा वाला नाटककार पागल हो गया? स्टीफन ज्विग, वाल्टर बेंजामिन, अर्नेस्ट हेमिंग्वे, सिल्विया प्लाथ, गोरख पांडेय आदि लेखकों ने क्यों आत्महत्या कर लिया? बहुत सारे सवाल मेरे जेहन में हैं। क्यों बताए कि क्यों इन तमाम ओजस्वी लेखकों की यह गति हुई?

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आपकी इस पोस्‍ट के संदर्भ में मुक्तिबोध की लिखी एक लाइन याद आ रही है ... शायद किसी कहानी का हिस्‍सा है...मुझे शब्‍दश: याद नहीं, लेकिन लब्‍बो लुआब ये है-
जो व्‍यक्ति कभी-कभार दिल की आवाज सुनता है वह कवि हो जाता है, जो दिल की आवाज लगातार सुनता है वह पागल हो जाता है और जो दिल की आवाज सुन कर उसे जीवन में उतारता है वह क्रांतिकारी हे जाता है।

गुरु...यहां से सूत्र पकड़ें...मुझे इससे आसान सिरा नहीं दीखता आपके सवाल का...

Kumar Mukul ने कहा…

आपकी बातें वाजिब है पागल का तमगा बददिमागी से उपजता है

बेनामी ने कहा…

आप का ब्लॉग बहुत अच्छा लगा ,अफ़सोस है कि अ तक इसके बारे में पता नहीं था