शुक्रवार, नवंबर 06, 2009

प्रभाष जोशीः अब के सवनवां बहुरि नहि अइहैं...


यह कहने का कोई मतलब नहीं
कि तुम समय के साथ चल रहे हो
सवाल यह है कि समय तुम्हें बदल रहा है
या तुम समय को बदल रहे हो?

लोग वक्त के साथ चलने के लिए दिन-रात भागा-दौड़ी कर रहे हैं...कहीं मिसफिट न हो जाएं, लोग आउटडेटेड न कहने लगें इसलिए वे समय के साथ कदम ताल करते रहते हैं, लेकिन प्रभाष जोशी ऐसे नहीं थे. वे समय को अपने पीछे चलने के लिए मजबूर कर देने वाले इंसान थे. मैंने जितना उन्हें जाना वह बहुत नाकाफी है...उन्हें जानने के लिए जिंदगी ने वक्त भी उतना नहीं दिया। पर खैर...प्रभाष जी के आलोचक भी मैंने खूब देखे हैं....विकट, उनके निकट और उनसे दूर भी. ऐसों का कोई क्या करे जिनके श्रीमुख से कटु वचन और गाली ही स्वाभाविक लगती है...प्रभाष जी की मौत की खबर सुनकर पता नहीं उन्हें कैसा लग रहा होगा। पर अब यह सब देखने-सुनने के लिए वे नहीं आने वाले हैं।

मेरा दस साल पुराना परिचय था और वह भी प्रगाढ़ नहीं...बीच-बीच में मिलता रहता था। उनसे किसी मसले पर कुछ पूछता था तो वे जरूर बताते थे. पर इस वक्त की बोर्ड पर न उंगली चल पा रही है और न कुछ सूझ रहा है कि क्या लिखूं....? चचा ग़ालिब ने लिखा है...करते हो मना मुझको कदमबोश के लिए, क्या आसमां के भी बराबर नहीं हूं मैं...आमीन.

2 टिप्‍पणियां:

शिरीष कुमार मौर्य ने कहा…

प्रभाष जी नहीं रहे, यह दुखद है.
उन्हें श्रद्धांजलि.
रही बात उनके आलोचकों की तो उसका अपना महत्व है. मैं खुद को भी कई कई बार उनसे असहमत पाता हूँ. पिछ्ले दिनों ही उन्होने हिंदुत्व और जाति व्यवस्था को लेकर काफ़ी घिसी-पीटी और आपत्तिजनक बातें अपने एक लेख में लिखी थीं. ऐसे कई उदाहरण हैं. मान-सम्मान अपनी जगह है लेकिन अंधभक्ति नहीं की जानी चाहिए.

एक बार फिर प्रभाष जी को याद और सलाम.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

प्रभाष जोशी जी विचारों के महास्‍तंभ रहे। विनम्र श्रद्धांजलि।