घर में क्या था कि तिरा गम उसे गारत करता
रखते थे एक हसरत-ए-तामीर, सो है
मुझे ऐसा लगता है कि चचा ग़ालिब ने बेहद दुखी और नाउम्मीद होकर ही शायद इस शेर में खुद को व्यक्त किया होगा. वक्त गवाह है कि अपने समय के हर बड़े शायर को जमाने भर के गम को तो झेलना ही पड़ा उससे भी कहीं ज्यादा शायद लोगों ने उन्हें अपने तईं परेशान करने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी. मिर्जा के बेहद करीबी शागिर्द मौलाना मुसद्दस खां हाली ने लिखा है कि बुढ़ापे में भी उनकी शायरी, उनकी प्रतिभा से जलने वाले लोग गालियों से भरे खत उन्हें भेजते थे. मिर्जा इससे इतना परेशान हो गए थे कि लिफाफा खोलने से पहले ही उनका हाथ कांपने लगता था. हाली ने लिखा है कि ऐसे एक दोपहर को जब वे मिर्जा के पास बैठे थे तो डाकिये ने खत लाकर दिया. हाली यह जानते थे कि आजकल मिर्जा के पास कैसे-कैसे खत आते हैं. मिर्जा ने उन्हें लिफाफा खोलने को कहा. एक बार तो वे सहमे लेकिन मिर्जा ने जब दोबारा कहा तो उन्होंने लिफाफा खोला. खत में बहुत खराब-खराब गालियां थी. मिर्जा ने पूछा कि क्या लिखा है? तो इसका जवाब देने में हाली को अटपटा लगा. मिर्जा हाली के हाथ से खत लेकर खुद ही पढ़ने लगे. खत पूरा पढ़ने के बाद ठहाका लगाकर हंसे. हाली ने हैरत से उन्हें देखा कि अरे ये तो हंस रहे हैं? मिर्जा ने कहा कि कमबख्त मुझे इस उम्र में मां की गालियां देता है. देखिये हाली साहब कमबख्त को गाली देने का भी शऊर नहीं है. अरे, इनसान जब बच्चा होता है तब वह सबसे ज्याद करीब अपनी वालिदा के होता है, जवानी में बीवी के- तो उस वक्त जब उसे गाली अपने सबसे करीबी से जोड़कर दी जाए तो उसे गुस्सा आता है. बुढ़ापे में अगर मुझे बेटी की गाली देता तो एक बात थी लेकिन कमबख्त गाली दे रहा मुझे मां की. यह कहने के बाद मिर्जा और जोर-जोर से ठहाके लगाने लगे. तो साहिबो, ऐसे जिंदादिल शायर चचा ग़ालिब.
जब तवक्को ही उठ गई ग़ालिब
क्या किसी का गिला करे कोई
1 टिप्पणी:
गालिब चचा की बातों को पहुंचाने के लिए शुक्रिया.
गिरीन्द्र्
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