सोमवार, अगस्त 27, 2007

कुँवारों में भारी निराशा और हताशा

अनेक युवा शादी की तमन्ना दिल में लिए हुए इधर उधर घूम रहे हैं लेकिन शायद उनके लिए कोई दुल्हन बची ही नहीं हो.शायद उसे दुनिया में आने से पहले ही मार दिया गया हो.अनेक गाँवों के कुँवारों में भारी निराशा और हताशा भर गई है. अनेक गाँवों की क़रीब एक चौथाई महिला आबादी ख़त्म हो गई है. इसका नतीजा ये हुआ है कि कुँवारे युवा अब बाहर जाकर अपने लिए दुल्हनों की तलाश करने लगे हैं.एक ऐसे ही कुँवारे कहते हैं, "मुझे कोई स्थानीय लड़की नहीं मिल सकी जिससे मैं शादी कर पाता. इसलिए मैंने पिछले साल बाँग्लादेश से अपने लिए दुल्हन ख़रीदी, हालाँकि वह सौदा भी काफ़ी महँगा पड़ा." उनकी पहली संतान भी एक लड़की ही है जिसका स्वास्थ्य बहुत गिरा हुआ है और लगता है वह भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है.लगता है पुराना सिलसिला ही आगे बढ़ रहा है यानि बेटा पैदा होने की तमन्ना कहीं न कहीं हर दिल में बैठी है.अगर यह सिलसिला यूँ ही जारी रहा तो वह समय दूर नहीं जब इस पूरे क्षेत्र में मानवता का संकट ही पैदा हो जाएगा.

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