मेरे बेहद प्रिय शायर मीर तकी मीर ने एक शेर कहा है-
कल खोई थी नींद जिससे मीर ने
इब्तिदा फिर वही कहानी की
तकरीबन आठ महीने के बाद ब्लागिंग दुनिया में फिर वापसी कर रहा हूं. सफर-ए-हयात की उलझनों में ऐसा उलझा कि कब इतना वक्त निकल गया पता ही नहीं चला।
कुंवर नारायण की एक कविता की यह पंक्तियां मुझे बहुत प्रिय है :
घर रहेंगे,
हमीं उनमें रह न पायेंगे
समय होगा,
हम अचानक बीत जायेंगे।
वक्त बीतता चला जाता है और इनसान को फुरसत के रात दिन नहीं मिलते। तभी चचा ग़ालिब ने यह इच्छा व्यक्त की थी-
दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात-दिन
बैठे रहे यूं ही तखय्युले-जानां किए हुए ....
आमीन!