बुधवार, अगस्त 26, 2009

इब्तिदा फिर वही कहानी की


मेरे बेहद प्रिय शायर मीर तकी मीर ने एक शेर कहा है-

कल खोई थी नींद जिससे मीर ने

इब्तिदा फिर वही कहानी की

तकरीबन आठ महीने के बाद ब्लागिंग दुनिया में फिर वापसी कर रहा हूं. सफर-ए-हयात की उलझनों में ऐसा उलझा कि कब इतना वक्त निकल गया पता ही नहीं चला।


कुंवर नारायण की एक कविता की यह पंक्तियां मुझे बहुत प्रिय है :

घर रहेंगे,

हमीं उनमें रह न पायेंगे

समय होगा,

हम अचानक बीत जायेंगे।

वक्त बीतता चला जाता है और इनसान को फुरसत के रात दिन नहीं मिलते। तभी चचा ग़ालिब ने यह इच्छा व्यक्त की थी-

दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात-दिन

बैठे रहे यूं ही तखय्युले-जानां किए हुए ....


आमीन!

2 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

आमद सुखद है ...पेंटिंग भी ..इस गली में आना जाना रखिये ...मसरूफियत में मिलने का भी एक मजा है

Ashish Anchinhar ने कहा…

नमस्कार भाइ साहेब,
हिन्दी मे हम अहाँ के तँ नहि लीखि सकैत छी मुदा तकर अफसोच नहि हमरा। ब्लाग अपनेक नीक।वैचारिक लेख प्रचुर मात्रा मे देल जाए। मैथिली ब्लाग अपनेक कहिआ आओत। http://anchinharakharkolkata.blogspot.com सेहो देखल जाए।


अपनेक
आशीष अनचिन्हार