रविवार, सितंबर 02, 2007

पाकिस्तान में मुहाजिरों का हाल


आजादी की साठवीं सालगिरह मनाते हुए हम शायद उन लोगों को भूल रहे हैं जो भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण अपनी आंखों में नए मुल्क का ख्वाब लिए हुए भारत से पाकिस्तान गए और वहां जाकर मुहाजिर कहलाए। जो आज के पाकिस्तान यानी पश्चिमी पाकिस्तान गए वे मुहाजिर कहलाए और जो पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश गए वे वहां जाकर बिहारी मुसलमान कहलाए। धर्म एक है, खुदा एक है बावजूद इसके इन साठ सालों में भी उनका अपना वतन कहीं नहीं है। जबकि उस वक्त के मुसलमानों सबसे चहेते रहनुमा कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्‍ना ने रहमत अली के दिए हुए शब्द पाकिस्तान को मुसलमानों का एक ऐसा यूटोपिया बनाकर पेश किया था जहां जाकर उनके सारे मसले खत्म हो जाएंगे। मसले तो खत्म नहीं हुए अलबत्‍ता उनके तमाम अरमान आज भी स्थानीय मुसलमानों और दोयम दर्जे के सरकारी कानून के कारण खत्म होते जा रहे हैं। हम शायद उन्हें भी भूलने की गुस्ताखी नहीं कर रहे हैं जो बंटवारे की वजह से मारे गए, बेघर हुए और कुछ लोग आजाद वतन का ख्वाब आंखों में लिए हुए हिंदुस्तान आ गए और पाकिस्तान चले गए? इस तथ्य को आखिरकार हम कैसे भुला सकते हैं कि इस तकसीम में तकरीबन 5 लाख से ज्यादा लोग मारे गए, 10 हजार से ज्यादा महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, 10 लाख से अधिक बंटवारे के बाद अपना घर-बार छोड़कर इधर-से-उधर आए और जो लोग उधर गए वे आज भी विस्थापितों की जिंदगी जीने के मजबूर हैं।


बंटवारे के बाद अपने लिए एक अलग देश का ख्वाब लिए हुए हिंदुस्तान से पाकिस्तान गए तकरीबन 50 फीसदी मुहाजिर बेहद गरीबी में कराची तथा सिंध प्रांत के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। इस कथित आजादी के साठ साल बीत जाने के बाद भी उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है। वे आज भी दाने-दाने के मोहताज हैं और पेट भरने के लिए कराची शहर के गुज्जर नाला, ओरंगी टाउन, अलीगढ़ कालोनी, बिहार कालोनी और सुर्जानी इलाकों में स्लम और बदबू भरी गलियों में किसी तरह जीवन बसर कर रहे हैं। मुहाजिर नौजवान बी.ए., एम.ए. पास करके धक्‍के खाते रहते हैं लेकिन उन्हें तमाम मुश्किलों के बाद भी नौकरी नहीं मिलती। विभाजन के बाद भारत से पलायन करके गए लोग पाकिस्तान की कुल जनसंख्या के तकरीबन 8 फीसदी हैं लेकिन वे सरकार की नजरों में इन साठ सालों के बाद भी इनसान नहीं मात्र एक संख्या हैं। भारत से वहां गए लोगों में काफी तादाद निम्न-मध्यम वर्ग के लोग भी थे जो सांप्रदायिक दंगों को झेलते हुए पाकिस्तान पहुंचे थे और उनके हाथों में कुछ भी नहीं था। जिन लोगों तब कुछ नहीं मिल सका उन्हें आजादी के साठ साल बीत जाने के बाद भी आज तक कुछ नहीं मिल सका है, सिवाए स्थानीय निवासियों के नफरतों के। वे तब भी गरीब थे और आज भी गरीब हैं। कराची के इन मुहाजिरों की एक पूरी पीढ़ी ने जहां बंटवारे का दर्द और सांप्रदायिक दंगों की पीड़ा झेली तो दूसरी ओर आज की युवा पीढ़ी गरीबी और दोयम दर्जे की सरकारी नीतियों की मार झेल रही है। इस धार्मिक विभाजन का सबसे त्रासद पहलू यह है कि इसमें कई चीजों की उपेक्षा करके मात्र धर्म को एक आधार बना दिया गया। तत्कालीन हिंदुस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय में यह भावना भर दी गई थी कि हिंदू बहुल देश में रहना उनके लिए फायदेमंद नहीं होगा।


मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए धर्म के आधार पर एक अलग देश की मांग करने लगी थी। विश्व युद्ध के बाद यह साफ हो चुका था कि अब उनकी मांग की अनदेखी कर पाना संभव नहीं होगा। सत्‍ता हस्तांतरण के ट्रेनों में सीमा पार कर रहे लोगों की लाशें भेजी जानी लगी और कई बार तो लाशों को क्षत-विक्षत करके भेजते थे। भयावह यह है कि अन्य त्रासदियों की तरह इसमें भी सबसे ज्यादा हिंसा और बलात्कार की शिकार दोनों तरफ की महिलाएं हुईं। बचकर जो गरीब महिलाएं वहां पहुंच गई उनकी औलाद आज भी कराची की गलियों में पालीथिन बीनकर, मैला ढोकर सम्मान से जीने की कोशिश में ही हलकान होकर हताश हो चुकी है। बांग्लादेश यानी उस वक्त के पूर्वी पाकिस्तान गए बिहार के मुसलमान चूंकि उर्दू भाषी थे इसलिए वे आमार बांग्ला सोनार बांग्ला के कथित राष्ट्वादी धारा में फिट नहीं हो सकते थे इसलिये वे उनके लिये आज भी बाहरी लोग हैं। कराची के मुहाजिरों का दर्द भाषाई स्तर पर तो एक हद तक दुखदायी नहीं है लेकिन बांग्लादेश गए बिहारी मुसलमानों का दर्द आजादी के साठ वर्ष बीतने के बाद भी एक अछोर दर्द में तब्दील होकर रह गया है। वहां न उनका वतन है अपना, न भाषा है अपनी और कहने को ही सही न अपना कोई एक समाज विकसित हो सका है। उर्दू के शायर जोश मलीहाबादी, कथाकार सआदत हसन मंटो पाकिस्तान तो चले गए लेकिन वे कभी वहां सहज महसूस नहीं कर पाए। तत्कालीन पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान के दोनों ओर अपने-अपने पाकिस्तान में आज भी अविभाजित हिंदुस्तान से गए मुसलमान वहां अपना वतन ढूंढ रहे हैं और सत्‍ता की बागडोर थामे रहनुमा इसमें उनकी कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं।

3 टिप्‍पणियां:

हरिमोहन सिंह ने कहा…

अगर ये मुहाजिर पाक की सत्‍ता में अपना उचित स्‍थान हासिल कर ले तो क्‍या होगा

बेनामी ने कहा…

अच्छा आलेख।मुशर्रफ़ भी मुजाहिर हैं।

अफ़लातून ने कहा…
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