सोमवार, सितंबर 24, 2007

नीहारिका झा उस भागलपुर की हैं जो प्राचीन विश्वविद्यालय विक्रमशिला जैसे शिक्षा केंद्र और रेशम के लिए ख्यात रहा है. रहा है, शब्द का प्रयोग मैंने इसलिए किया कि विक्रमशिला की तरह रेशम भी अब अतीत होता जा रहा है वहां. वहां की तहजीब, नफासत नीहारिका की भाषा और अंदाजे-बयां में भी परिलक्षित होता है. उनकी स्कूल और कालेज की शिक्षा-दीक्षा स्थानीय स्तर पर हुई. दैनिक भास्कर, जयपुर में काम करने के बाद इन दिनों वे वेबदुनिया.काम में कार्यरत हैं. उन्होंने मुझे एक मेल किया, जिसमें सिर्फ उनकी सोच-विचार परिलक्षित होता है बल्कि कुछ काव्य पंक्तियों में उनकी भावनाओं का उत्पलावन भी दिखाई देता है. पत्र उन्होंने मुझे व्यक्तिगत रुप से लिखा था, लेकिन पर्सनल इज पोलिटिकल शायद इसी तरह के पत्रों को लेकर कहा जाता है. अगर संभव हो सका तो अगले सप्ताह से नीहारीका जी ख्वाब का दर पर बराबर दस्तक देती रहेंगी.

कैसे हैं पंकज जी?
एक आम लड़की की तरह ही अगर जिंदगी बितानी होती तो शायद घर से इतनी दूर मैं आती ही नहीं। जानते हैं बिहार में यही सोच है, खासकर मैथिल ब्राह्मण परिवारों में अभी भी यह बात गहरी समाई हुई है कि लड़कियों को अपना वजूद बनाने का हक तभी है जब उसके मां-बाप या शादी के बाद उसका पति उसे इस बात की इजाजत दे. बाद मैंने देखा कि यह भावना सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में मौजूद है. मुझे पहले महसूस होता था कि बिहार में ही जातिवाद, अराजकता या भेदभाव वाली स्थिति है, लेकिन यह जानकर और ज्यादा दु:ख हुआ कि पूरे देश के लोग इस आग में जल रहे हैं. लोग कहते रहते हैं कि लड़कियाँ आगे बढ़ रही हैं, उनका विकास हो रहा है, लेकिन उनकी जिंदगी जिस दोराहे पर खड़ी हो गई, उस पर एक ओऱ जहां आधुनिक होने का ठप्‍पा लगा है वहीं दूसरी ओर घर-परिवार के मोर्चे पर उन्‍हें नाकाबिल साबित करने की लगातार कोशिश की जाती है. आज की स्थिति तो पहले से भी कहीं ज्‍यादा भयावह हो गई है. क्‍योंकि जानते हैं, दोराहे की जिंदगी बड़ी कष्‍टप्रद होती है.
मैं नारीवादी तो नहीं हूँ, हाँ कभी-कभी मन सेंटिया जाता है. इन बातों से आप बोर तो नहीं हो गए? अभी-अभी दिमाग में एकाध पंक्तियां आई हैं-
''मन आज भी उदास है,
एक गहरे कुँए की केवल इतना है
पत्‍थर मारो तो कुँए के पानी में
अब भी होती हैं हलचल
लेकिन इन आँखों का पानी न जाने कब सूख गया ? ''
हमारा संवाद बना रहेगा.
नीहारिका

2 टिप्‍पणियां:

अनिल पाण्डेय ने कहा…

niharika ji ke bare mein jitna kaha jaye utna kam hai.mai to unhe tab se janta hoon jab wo college mein thi. unki ilakshan pratibha wahi se parilakshit ho rahi thi. unki lekhni bahut jabardast hai. hamare batch ka har sakhs apne write up, lekh aur news unhi se edit karwata tha. unki shabdshakti ka bhi koi jod nahi hai.

विनीत उत्पल ने कहा…

pankajee, bhagalpur sirf vikramshila aur resham ke liye hee nahee jana jata, bilklki wahee mahabharat ka karn kee nagaree champa hai.ravindranath tagore ne gitanjili kee kuch kavitaon kee rachna bhee yahan ke gange tat ke pas bave uche sthan par kee thee, jahan aaj university ke aahate me ravindra bhavan hai. bangla ka mahan lekhak banful kee karam bhumee bhee hai. actor ashok kumar kee janam yahin ke rajbatee me hua tha.devdas, jis par abhee thik banee sabhee filmen apne jamne kee hit rahee hain, uske lekhak sharadchan bhee yahen ke the.
baharhal, batate chlun, yahee vah shar hai jahan aankhforva khand se lekhar 1989 me bhesan danga bhee hua tha.