वे सस्ते में देश बेचते हैं, सस्ते में ईमान बेचते हैं और न जाने सस्ते में क्या-क्या नहीं बेच डालते हैं. मगर कोई गरीब अगर अपना अंग बेचता है तो सरकार हाय-तौबा मचाने लगती है। आत्महत्या करना जुर्म है लेकिन भूखे पेट सोना और तिल-तिल करके मरना जुर्म नहीं है। संविधान का अनुच्छेद २१-ए हमारे जीन के अधिकारों की हिफाजत करने का दावा करता है। मगर क्या वाकई? बनारस के गरीब बुनकरों की बड़ी फौज अपने बाल-बच्चों का पेट भरने के लिए खून बेच-बेचकर घर चलाया और जब खून भी न बचा तो मर गए। यहां खून बेचना वैध है, गुर्दा बेचना वैध है और अफसोस कि इस हालत तक पहुंचाने वाले लोगों के सभी कृत्य भी वैध हैं। कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि बांग्लादेश में ग़रीबी से बदहाल एक महिला ने रोज़ी-रोटी चलाने के लिए अपनी आँख बेचने के लिए विज्ञापन दिया है. बांगलादेश में किसी भी अंग को बेचना ग़ैरकानूनी है. लेकिन क्या कोई यह सोचता है कि किसी भी देश में भूखे पेट सोना गैरकानूनी क्यों नहीं होता?
3 टिप्पणियां:
बहुत सही बात उठाई आपने । विचारोत्तेजक !
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क्या देश सुन रहा है ,कानून सुन रहा है ?
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बिल्कुल सही कहा आपने हर बार भूख से मौत पर हल्ला मचाया जाता है
अभी इसे देखा| विचार से सहमत हूँ किंतु यह चित्र एक अत्यन्त विख्यात चित्र है , १९४७ के विभाजन के समय का | इसलिए इसके साथ जबरदस्ती या अनजाने में बिठाया -सा जान पड़ता है|
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