कठिन है रहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो/बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो/तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है/मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
मंगलवार, अक्टूबर 20, 2009
पाकिस्तान में निराला की निराली मिठाईयां
खाने-पीने के शौकीनों के लिए पाकिस्तान का लाहौर शहर वाकई स्वर्ग है, जहां विभाजन से पहले ग्वालमंडी के नाम से मशहूर बाजार पिछले कई दशकों से फूड स्ट्रीट के नाम से जाना जाता है। फूड स्ट्रीट में सड़क के दोनों ओर सिर्फ खाने-पीने की ही दुकानें हैं। शाम के छह बजे के बाद इस मार्केट में सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी जाती है और खाने-पीने के कद्रदानों को सिर्फ पैदल ही जाने के इजाजत होती है। दिलचस्प यह है कि यदि आपको अलग-अलग तरह के पकवान खाने का दिल कर रहा है, तो इसके लिए अलग-अलग दुकानों में जाने की जरूरत नहीं है। किसी भी एक मनपसंद दुकान पर आप बैठ जाएं, वहां जो पसंद हो वह खाएं और वहीं बैठे-बैठे जो दिल करे उस पकवान के लिए आप वेटर को आर्डर करें। वह हर दुकान से चीजें ला-लाकर आपके सामने परोसता जाएगा। फिर आप उसी को बिल दे दें। वह जिस दुकान से जो लाया होगा, वहां जाकर पैसा चुका आएगा।
तो साहब, हम युसुफ की खीर की दुकान पर खीर खाने के लिए बैठे। दुकान के मालिक युसुफ खान बड़े कड़ाह में दूध खौला रहे थे और बीच-बीच में पाउडरनुमा कुछ डालते जा रहे थे। मैंने पूछा कि ये पाउडर क्या है, तो उन्होंने कहा, जनाब काजू-बादाम-पिस्ता और इलाइची का पाउडर है। सूखे मेवे पहले ही डाल दिए हैं। जिसको आप पाउडर कह रहे हैं, वही तो असली चीज है हुजूर..यह कहकर वे पान चबाते हुए खीर बनाने लगे। मेरे सामने ही पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान पूरे लाव-लश्कर के साथ खीर खाने आ पहुंचे। युसुफ साहब ने जैसी खीर खिलाई, वैसी खीर बनारस, आगरा और मथुरा में भी नहीं खाई। खीर खाकर जब मैं चलने लगा तो युसुफ भाई ने कहा, जनाब यदि आपने निराला की मिठाई नहीं खाई तो समझ लीजिए लाहौर में आपने कुछ नहीं खाया। आप हिंदुस्तान लौटकर पछताएंगे कि लाहौर जाकर भी निराला की मिठाई खाए बगैर लौट आया। निराला नाम सुनते ही मेरे जेहन में महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का नाम निराला..निराला..गूंजने लगा। भारत में रहते हुए मैंने ऐसे नामों की कल्पना भी नहीं की थी-लक्ष्मी चौक, सुंदर दास रोड, लाला छतरमल रोड, दयाल सिंह कालेज, गुलाब देवी अस्पताल, सर गंगाराम अस्पताल, पटेल अस्पताल और अब निराला स्वीट्स?
तकरीबन पचास साल पहले 1948 में अमृतसर से पाकिस्तान आकर मरहूम ताज दीन ने पुराने लाहौर के फ्लेमिंग रोड में मिठाई और नाश्ते की दुकान खोली। थोड़े ही समय में उनके मिठाई के चर्चे होने लगे। उनके बाद उनके पुत्र फारुक अहमद ने लाहौर के जेल रोड में दूसरी दुकान खोली। उन्होंने पैकेजिंग और गुणवत्ता को लगातार बरकरार रखने पर पूरा जोर लगाया। जिसका बड़ा असर यह हुआ कि आज पाकिस्तान में निराला एक बड़ा ब्रांड नाम बन गया है। जिसका फायदा उन्हें दूसरे व्यवसायों में मिल रहा है। फारुक अहमद के दो बेटे एम.बी.ए. पास हैं और उन्होंने इस बिजनेस का आधुनिकता के मेल करके दुकान की सुंदरता के मामले में मैकडोनाल्ड को भी मात दे दिया है। इस वजह से आज निराला की प्रसिद्धि का आलम ये है कि कराची, रावलपिंडी, इस्लामाबाद, सियालकोट, पेशावर, क्वेटा, सरगोधा, फैसलाबाद यानी पूरे पाकिस्तान में निराला स्वीट्स की एक बहुत बड़ी श्रृंखला है। कुछ-कुछ उसी तरह जैसे दिल्ली में अग्रवाल स्वीट्स और नाथू स्वीट्स की शहर भर में पूरी चेन है। मगर इनकी मौजूदगी पूरे देश तो क्या पूरे एनसीआर क्षेत्र में भी बहुत बड़े पैमाने पर नहीं दिखाई देती है। मगर निराला और पाकिस्तानी अवाम जैसे एक-दूसरे के पूरक हैं। हर शहर में निराला, हर जुबान पर निराला-ये स्लोगन वाकई पाकिस्तान में सच लगता है।
कराची में निराला स्वीट्स के नब्बे फीसदी से ज्यादा कारीगर हिंदू हैं। यह धारणा लगभग अंधविश्वास की तरह पाकिस्तानियों के मन में है कि हिंदू बेहतर मिठाई बनाते हैं। इस वजह से निराला के अलावा और दूसरी मिठाई की दुकानों में भी हिंदू कारीगर ही आम तौर पर होते हैं। पूरे पाकिस्तान में 25 लाख से ज्यादा हिंदू आबादी है, लेकिन दुखद यह है कि वहां भी भारत की ही तरह जातिवाद है। इसलिए सवर्ण पाकिस्तानी हिंदू नीची जाति के कारीगरों के हाथों की बनी हुई मिठाई लेना पसंद नहीं करते। मगर मुसलमान इस तरह का कोई भेदभाव नहीं बरतते। हालांकि शाकाहारी होने के कारण पाकिस्तानी मुसलमान वहां के हिंदुओं को दालखोर यानी दाल खानेवाला कहकर चिढ़ाते हैं, मगर ये भी स्वीकार करना नहीं भूलते कि जनाब हिंदू से बेहतर शाकाहारी खाना और कोई नहीं बना सकता। मैंने जिज्ञासावश पूछा क्यों? तो निराला स्वीट्स के मालिक ने कहा कि मुसलमान कारीगर सब्जी भी बनाएंगे तो मटन-चिकन की तरह बनाकर रख देंगे। बगैर अधिक तेल-मसाला डाले हमारे हिंदू कारीगर क्या लाजवाब दाल-सब्जी बनाते हैं। खाना सादा, मगर जायका निराला।
निराला की मिठाईयों की एक लंबी सूची है-सौ से भी ज्यादा किस्म की। रेगुलर स्वीट्स, स्पेशल स्वीट्स और शुगर फ्री स्वीट्स की लंबी सूची है। बालूशाही, बर्फी बादाम, बर्फी रुस्तम, हलवा टिक्की, हलवा हब्शी, हलवा कराची, पतीसा गोल, फीकी जलेबी, इमिरती, समोसा गोंडवी, शाही तोश जैसी रेगुलर स्वीट्स की लंबी सूची है। वहीं मधुमेह रोगी मिठाई के शौकीनों के लिए शुगर फ्री रसगुल्ले, काला जामन, लाल जामन, पेठे, मोतीपाक, मोतीचूर की कई प्रकार उपलब्ध रहते हैं। मिठाई जब खा लें तो निराला का राबड़ी मिल्क जरूर ट्राई कीजिए और तब तक पेट यदि पूरी तरह भर चुका हो तो निराला-पानी ब्रांड का मिनरल वाटर तो पी ही सकते हैं। यदि दोनों न पीना चाहें तो निराला स्वीट्स में एक अद्भुत किस्म का जूस मिलता है जिसका नाम है-बाउंसर। जीभ से स्पर्श होते ही वाकई बाउंसर लगने का एहसास होता है। नमकीन के शौैकीनों के लिए भी बहुत बड़ी रेंज है -दाल मूंग, दाल मसूर, पोपट और अनेक तरह के दालमोट, नानखटाई और मैदे के विभिन्न बिस्कुट। ..और निराला के समोसे का तो भई जवाब नहीं। समोसा यहां वेज और नान वेज दोनों मिलता है। नान वेज के शौकीन चाहें तो चिकेन समोसा आजमा सकते हैं। नाश्ते में वहां एक स्पेशल चीज मिलती है-फीओनियन। यह सेवई जैसी एक चीज होती है जो बेहद गर्म दूध में मेवे वगैरह डालकर परोसते हैं। ऐसा लाहौर के लोग मानते हैं कि यदि आपने निराला में यह नाश्ता कर लिया तो आपको दिन भर और कुछ खाने की जरूरत नहीं होगी। रमजान के महीने में वहां यह खासा लोकप्रिय नाश्ता माना जाता है और विशुद्ध देशी घी में बनी निराला की इमरती और जलेबी का तो क्या कहना।
निराला स्वीट्स ने कई तरह की बेहतरीन पैकेजिंग के लिए एक अलग विभाग ही बनाया हुआ है, जहां ग्राहकों के आर्डर पर अलग-अलग तरह से उपहार दिए जाने वाले मिठाई की मनपसंद पैकिंग बिल्कुल मुफ्त की जाती है। पाकिस्तान में और पाकिस्तान से बाहर अपनी मिठाई के शौकीनों के लिए निराला ऑनलाइन ऑर्डर लेता है और महज 72 घंटों में घर पहुंचा देता है। वक्त की पाबंदी का इतना खयाल रखा जाता है कि वक्त की पाबंदी के मामले में वहां निराला की मिसाल दी जाती है। अफसोस यह है कि इन दिनों दोनों देश के बीच जिस तरह के रिश्ते हैं, उस वजह से शायद हम भारतवासी निराला की मिठाई नहीं मंगवा सकते। फिलहाल हम यह प्रार्थना ही कर सकते हैं कि स्थिति सामान्य हो तो भारत के लोग भी निराला की मिठाई चख सकें।
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2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर जानकारी!
कभी श्री मोहनलाल भास्कर की "मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था" पढ़ी थी और उसमें भी पाकिस्तान में खाने पीने की दुकानों के विषय में थोड़ी सी जानकारी मिली थी। आज आपके इस पोस्ट से जानकारी में और भी इजाफा हुआ।
रोचक जानकारी ...कितना कुछ मिलता जुलता है पर कितना अलग कर दिया है वक़्त ने ..निराला की मिठाई लगा कहीं यही की बात है ...बहुत कुछ जाना आपकी इस पोस्ट से शुक्रिया
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