गुरुवार, अगस्त 09, 2007

कल खोई थी नींद जिससे मीर ने
इब्दिता फिर वही कहानी की
-मीर तकी मीर
दोस्तो,
एक तबील अरसे के बाद फिर चिट्ठाकारी की उसी दुनिया में लौटा हूं जिससे कुछ वक्त के लिए मैं गायब था. वक्त-वक्त की बात है. वक्त ऐसा भी इनसान पे कभी आता है कि छोड़कर साथ साया भी चला जाता है.इनसान का इम्तहान उसी वक्त होता जब वह अपनी जिंदगी के सबसे मुश्किल भरे दौर से गुजर रहा होता है.आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने एक जगह कहा कि ज्ञान के क्षेत्र में सबसे कठिन दुर्ग का विजय ही असली विजय माना जाता है.मगर इनसान कुछ भी है तो है आखिरकार इनसान ही. घबराना और घबराकर चिंतित हो जाना उसकी ज़ाती फितरत है.फिर यह भी कि वक्त से जिसे डर नहीं लगता वह उसकी कीमत तो चुकाता है लेकिन वक्त को अपनी ओर मोड़ता भी वही है. अगली कहानी कल. आमीन.

1 टिप्पणी:

Jitendra Chaudhary ने कहा…

आपने अपने फीड को इनेबल नही किया है शायद।
ये देखिए
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