शनिवार, दिसंबर 22, 2007

इब्तिदा फिर वही कहानी की

कल खोई नींद जिससे मीर ने
इब्तिदा फिर वही कहानी की
वक्त मिला तो अब फिर से कुछ वक्त ब्लाग को. ब्लागियानेवाले दोस्तों से गपशप को. इधर नये सिरे से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए दिन-रात जो लोग अखबारों, मंचों पर हलकान होते रहते हैं, माला जपते रहते हैं-उनके वे चेहरे फिर-फिर देखे.लाहौल विला कुवत.

बहुत कुछ इस बीच देखा किया इस बीच...
जिया मगर अपने ढंग से, मन से इस बीच.

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