शुक्रवार, दिसंबर 28, 2007

क्या आपको सरदार मलिक और असरारुल हक 'मजाज' याद हैं?

आज के पापुलर संगीतकार अन्नू मलिक को लोग जानते हैं. चैनल वाले भी जानते हैं. जनता उनके गीत गाती-गुनगुनाती है. मगर उनके पिता सरदार मलिक साहब को लोगों ने करीब-करीब भुला दिया है. इंतकाल से पहले एक रेडियो चैनल को दिये इंटरव्यू में सरदार साहब ने कहा कि उर्दू के बागी और इन्कलाबी शायर असरारुल हक 'मजाज' से वो एक गीत लिखवाना चाहते थे.इसलिए उन्होंने मजाज साहब को बंबई बुलाया. अपने घर पर रखकर खातिरदारी की. अपनी ख्वाहिश से उनको अवगत कराया. 'मजाज' साहब पीते बहुत थे. दिन-रात का भी ख्याल नहीं करते थे.इश्क़ और फिर शराबनोशी. इन दो ने मजाज़ पर कुछ ऐसा क़ब्ज़ा किया कि उनकी पूरी दुनिया जैसे यहीं तक सिमट कर रह गई.जिसे चाहा वह मिली नहीं और फिर शराब के ज़रिए ग़म भुलाते-भुलाते मजाज़ ने अपने आप को खो दिया.


एक हफ्ता जब गुजर गया तब उन्होंने सरदार साहब को बुलाया. सरदार साहब ने देखा कि वे तो लड़खड़ाते हुए बैठ गए और कहा कि सरदार लिखो. सरदार साहब लिखने लगे. वह गीत जब पूरा हो गया तो सरदार साहब ने उसकी जो धुन बनाई वह उस गीत की तरह ही लाजवाब बनी. मजाज साहब के लिखे इस अमर गीत को सरदार मलिक ने १९५३ में बनी फिल्म ठोकर लिया.यह गीत मजाज साहब के दर्द, उनके जेनरेशन की मुश्किलें और अपने समय के हालात की साफगोई के साथ बयान किया गया एक सच्ची दास्तान है.

इस गीत की तलाश मैं कुछ दिनों से कर रहा था. भाई यशवंत सिंह के प्रति आभार सहित पेश मजाज साहब का वह अमर गीत.

शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ
जगमगाती जागती सडकों पे आवारा फिरूं
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-बदर मारा फिरूं
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

झिलमिलाते क़ुमक़ुमों की राह में ज़ंजीर सी
रात के हाथों में दिन की मोहनी तस्वीर सी
मेरे सीने पर मगर दहकी हुई शमशीर सी
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

ये रुपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तस्व्वुर जैसे आशिक़ का ख़्याल
आह लेकिन कौन जाने कौन समझे जी का हाल
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

फिर वो टूटा इक सितारा, फिर वो छूटी फुलझड़ी
जाने किसकी गोद में आई ये मोती की लड़ी
हूक-सी सीने में उट्ठी, चोट-सी दिल पर पड़ी
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

रात हंस हंसके ये कहती है कि मैख़ाने में चल
फिर किसी शाहनाज़े-लाला-रुख़ के काशाने में चल
ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

हर तरफ़ है बिखरी हुई रंगीनियां रानाइयां
हर क़दम पर इशरतें लेती हुई अंगडाइयां
बढ रही है गोद फैलाए हुए रुसवाइयां
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

रास्ते में रुक के दम ले लूं मेरी आदत नहीं
लौटकर वापस चला जाउं मेरी फ़ितरत नहीं
और कोई हमनवां मिल जाए ये क़िस्मत नहीं
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

मुन्तज़िर है एक तूफ़ाने-बला मेरे लिए
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिए
पर मुसीबत है मेरा अहदे-वफ़ा मेरे लिए
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

जी में आता है अब अहदे-वफ़ा भी तोड़ दूं
उनको पा सकता हूं मैं, ये आसरा भी छोड़ दूं
हां मुनासिब है, ये ज़ंजीरे-हवा भी तोड़ दूं
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

इक महल की आड से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब
जैसे मुफ़लिस की जवानी जैसे बेवा का शबाब
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

दिल में इक शोला भड़क उठा है, आख़िर क्या करूं
मेरा पैमाना छलक उठा है, आख़िर क्या करूं
ज़ख्‍म सीने में महक उठा है, आख़िर क्या करूं
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

जी में आता है ये मुर्दा चांद तारे नोच लूं
इस किनारे नोच लूं और उस किनारे नोच लूं
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूं
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

मुफ़लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने
सैकडों चंगेज़ो नादिर हैं नज़र के सामने
सैकडों सुलतानो जाबिर हैं नज़र के सामने
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं

बढ के इस इन्द्रसभा का साज़ ओ सामां फूंक दूं
इस का गुलशन फूंक दूं उसका शबिस्तां फूंक दूं
तखते सुलतान क्या मैं सारा क़स्र ए सुलतान फूंक दूं
ऐ ग़म ए दिल क्या करूं, ऐ वहशत ए दिल क्या करूं
------------------------------------------------------------------------------
मायने - नाशादो-नाकारा-उदास और बेकार, क़ुमक़ुम- बिजली की बत्ती, शमशीर- तलवार, तसव्वुर- अनुध्यान, मैखाना- मधुशाला, शहनाज़े लाला रुख़- लाल फूल जैसे मुखड़े वाली, काशाने- मकान, इशरत- सुखभोग, फ़ितरत- स्वभाव या प्रकृति, हमनवा- साथी, तूफ़ाने-बला- विपत्तियों का तूफ़ान, वा- खुले हुए, अहदे-वफ़ा- प्रेम निभाने की प्रतिज्ञा, माहताब-चांद, अमामा- पगड़ी, मुफ़लिस- ग़रीब, शबाब- यौवन, मज़ाहिर- दृश्य, सुल्ताने जाबिर- अत्याचारी बादशाह, शबिस्तां- शयनागार, क़स्रे सुल्तान- शाही महल

कोई टिप्पणी नहीं: