बेबी हालदार कुछ महीने पहले पहली बार हांगकांग जा रही थी तो दिल्ली एयरपोर्ट पर उसे रोक दिया गया. अधिकारियों ने कहा कि यह महिला लेखिका कैसे हो सकती है? क्योंकि अधिकारियों की समझ के अनुसार लेखिका होने के साथ-साथ दिखना भी जरूरी है. सो बेबी उनकी नजरों में वैसा दीख नहीं रही थी. द अदर साइड आफ साइलेंस की मशहूर लेखिका उर्वशी बुटालिया भी बेबी के साथ थी. उनके समझाने का भी अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ. नतीजतन उस दिन बेबी की फ्लाइट मिस हो गई. अगले दिन एक सांस्कृतिक रुप से संपन्न अधिकारी की बदौलत बेबी की रवानगी संभव हो पाई. वहां जाकर दुनिया भर के लेखकों ने बेबी हालदार के संघर्ष से परिचय प्राप्त किया. उसके बाद बेबी पेरिस गईं. वहां तकरीबन एक सप्ताह तक वह रहीं और फ्रेंच भाषी समाज को अपनी प्रतिभा को लोहा मनवाया. आगे वहां घटी कुछ दिलचस्प घटनाओं के बारे में वह स्वयं यहां लिखेंगी.
कठिन है रहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो/बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो/तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है/मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
शनिवार, जनवरी 19, 2008
शनिवार, जनवरी 12, 2008
कल यानी 11. 01. 2008 को बेबी हालदार से मिला. बेबी हालदार पांच-छह साल पहले तक गुमनाम जरूर थी मगर आज वह इतनी चर्चित है कि बर्षों से कलम घिस रहे रचनाकारों तक को उससे रश्क हो सकता है. हालांकि आज भी बेबी का ठिकाना वहीं है, प्रो. प्रबोध कुमार के घर-डी.एल.एफ.सिटी गुड़गांव में. प्यार से जिन्हें वह तातुश कहती है. बेबी साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेने हांगकांग, पेरिस से होकर आ चुकी है और आज वह देश के भी कई शहरों में वायुयान से आती -जाती हैं, जो उनकी संघर्ष का नतीजा है. न्यूयार्क टाइम्स, बी.बी.सी. , सीएनएन-आइ.बी.एन. आदि पर उनका इंटरव्यू आ चुका है. अगले कुछ अंकों में हम बेबी हालदार से संबंधित कुछ जानकारियां लगातार यहां देंगे.
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