रविवार, सितंबर 28, 2008

वह क्या सब देख पाते हैं?

यह आवाज अब हमें कैसेट या सी.डी. में कैद म्यूजिक सिस्टम सुनाएगी. जिनकी आवाज में यह गीत यादगार बना, वह आवाज अब हमारे बीच नहीं है. महेंद्र कपूर नहीं रहे. नहीं रहीं प्रभा खेतान. इसी हफ्ते वे भी चली गईं. उनके लेखन के मुरीदों में से एक मैं भी हूं. लोग चुपचाप चले जा रहे हैं, कभी लौटकर न आने वाले सफर पर. हम जो देखते हैं, वह क्या सब देख पाते हैं?

2 टिप्‍पणियां:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

jana or aana ek niyam hai....
bas hme unhe bhulna nahi chahiye

श्रीकांत पाराशर ने कहा…

Aapki sammanjanak bhavnaon ko samjha ja sakta hai.vaise aisi hastiyan kabhi nahin marti. aise log amar ho jate hain.