फव्वाज तुर्की
1940 में हाइफा में जन्मे और कुछ सालों तक बेरूत में शरणार्थी शिविरों में रहे। युवावस्था आस्ट्रेलिया में बीता और सत्तर के दशक के शुरू में पेरिस में रहते हुए पहली किताब लिखी। पिछले करीब पैंतीस सालों से अमेरिका में रहते हैं और आस्ट्रेलिया-अमेरिका दोनों देशों की दोहरी नागरिकता उनके पास है। अपने बेबाक विचारों के लिए कुछ साल पहले वे जिस अखबार में काम करते थे, उससे बर्खास्त कर दिए गए, क्योंकि उन्होंने ईस्ट तिमोर में इंडोनेशियाई सरकार द्वारा किए गए दमन का मुखर विरोध किया था। अंग्रेजी में लिखी यह कविता पर्यावरणविद डा.वंदना शिवा ने अपनी किताब बायोपाइरेसीः द प्लंडर आफ नेचर एंड नालेज में उद्धृत की है, जो दुर्दमनीय जिजीविषा और व बीहड़ जिद भरी ललकार से सराबोर एक महत्वपूर्ण वक्तव्य है।
यह महत्वपूर्ण सामग्री हमें बड़े भाई यादवेंद्र जी के सौजन्य से प्राप्त हुई है और इसका इतना सुंदर अनुवाद भी उन्होंने ही किया है। उनके परिचय से ख्वाब का दर पर आनेवाले पाठक भली-भांति परिचित हैं। इस ब्लाग पर आखिरी पोस्ट उन्हीं की थी और ये शुरुआती पोस्ट भी उन्हीं से-
कल खोई थी नींद जिससे मीर ने
इब्तिदा फिर वही कहानी की।
बीजों के रखवाले
फूंक डालो हमारी धरती
जला डालो हमारे स्वप्न
हमारे गीतों पर छिड़क डालो तेजाब
कत्ल कर दिए गए हमारे परिजनों के लहू
इस्तेमाल करो अपने ज्ञान-विज्ञान
और मुंह में कपड़े ठूंस-ठूंसकर
अंदर ही अंदर दम घोंट डालो हमारी
आजाद, उद्दाम और देसी चीख़ों का.....
नष्ट कर दो
ध्वस्त कर दो
हमारी वनस्पतियां और मिट्टी
धूल में मिला दो हरे-भरे खेत
और पुरखों के बसाए हुए
हमारे गांव के गांव
एक एक पेड़
एक-एक घर
एक-एक किताब
एक-एक कानून
और वह जो हमारी बिरादरी का
भाईचारा और सौहार्द....
बम गिराओ और ज़मींदोज कर दो
एक-एक घाटी
अपना फरमान जारी करो
और मिटा डालो हमारी बिरासत
हमारे साहित्य
हमारे गीत-संगीत
खेतों और जंगलों को इतना नेस्तनाबूद कर दो
कि बचे न एक भी कृमि
एक भी पक्षी
कोई एक शब्द भी न ढूंढ पाए
दुबक कर जान बचाने का कोना...
सब कर लो
चाहो तो और कुछ सोचो और कर लो
तुम्हारी निरंकुशता अब मुझे नहीं डराती
न हताशा करती है मेरे हाथ-पांव सुन्न
क्योंकि मैंने हिफाजत से रखा हुआ है
एक बीज....
एक नन्हा-सा जीवित बीज
जिसकी करता रहूंगा रखवाली मैं जी-जान से
कि रोप पाऊं उसे फिर से धरती पर।
2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी कविता. इस प्रस्तुति के लिए साधुवाद!
बहुत अच्छी कविता और अनुवाद भी। कई दिनों बाद ख्वाब का दर जगमग-चकमक.. लग रहा है। अब फिर से यूं ही इस दर को गुलजार करते रहिए।
शुक्रिया
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