शनिवार, नवंबर 14, 2009


दोनों कविताएं इंडोनेशिया के प्रखर क्रन्तिकारी कवि और संस्कृतिकर्मी विजी थुकुल की प्रतिनिधि और बेहद लोकप्रिय रचनाएँ हैं.१९६३ में गरीब मजदूर परिवार में जन्मे थुकुल सुहार्तो विरोधी वामपंथी आन्दोलन में शामिल हुए और ट्रेड यूनियन आन्दोलन के साथ साथ सांस्कृतिक साहित्यिक क्षेत्र में खूब मुखर और सक्रिय रहे.जीविका के लिए छोटे मोटे काम करते रहे,पत्नी सिलाई का काम करती रही.

१९९५ में एक कपडा मिल में हड़ताल का नेतृत्व करते हुए पुलिस ने उनकी एक आँख फोड़ दी,पर उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आयी.क्रूर दमनकारी नीतियों के चलते उनको १९९६ में भूमिगत होना पड़ा.पर अप्रैल १९९८ के बाद उनसे किसी का संपर्क नहीं रहा.आशंका है कि सरकारी सेना ने उनको यातना देकर मार डाला.जैसे हमारे देश में इन्किलाब जिंदाबाद या हर जोर जुल्म के टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है जैसे जुमले प्रतिरोध आन्दोलन के प्रतीक बन गए हैं वैसे ही इंडोनेशिया में लोकतान्त्रिक प्रतिरोध आंदोलन में उनकी चेतावनी कविता याद की जाती है...

ख्वाब का दर के लिए यह यादगार काम किया है हमारे बड़े भाई यादवेन्द्र जी ने। इस ब्लाग के लिए वे नए नहीं हैं इसलिए अब उनके लिए परिचय की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही है। वे अपना अमूल्य योगदान लगातार हमें देते रहे हैं और आशा करते हैं कि उनने सौजन्य से हमें आगे भी बहुत अच्छी-अच्छी कविताएं पढ़ने को मिलेंगी।

चेतावनी

हुक्मरान देते रहें अपना भाषण
और लोग बाग अनमने होकर लौटने लगें अपने घरों को
तो हमें समझ लेना चाहिए
कि बिखर गयी है उनकी आस और उम्मीदें

अपनी मुश्किलें बयां करते करते छुपाने लगें लोग-बाग मुंह
और पड़ने लग जाएँ उनकी आवाजें मंद
तो हुक्मरानों को हो जाना चाहिए चौकस
और आ जानी चाहिए उनमे तमीज
सामने वाले को ध्यान देकर सुनने की

जब लोग बाग न कर पायें हौसला फरियाद तक करने का
मान लो कि बात पहुँच गयी है खतरे के मुहाने तक
हुक्मरानों की दर्पोक्तियाँ और बड़बोली भी जब होने लगे स्वीकार
तो हमें मन लेना चाहिए
कि सच पर मंडराने लगे हैं विनाश के बादल

जब मशविरे भी बगैर सोचे समझे
फेंक दिए जाएँ कूडेदानों में
घोंटी जाने लगे वाणी
अचानक रोक दी जाएँ आलोचनाएँ
कभी विद्रोह का नाम दे कर
तो कभी सुरक्षा भंग होने के अंदेशे से


ऐसे हाल में फिर
बचता है एक ही शब्द
प्रतिरोध
हाँ साथी ,केवल प्रतिरोध..


बस एक दिन कामरेड

एक कामरेड साथ लाता है तीन कामरेड
और हर एक पांच-पांच
सब मिलकर हो जाते हैं
कितने कामरेड?
एक कामरेड साथ लाता है तीन कामरेड
और हर एक पांच पांच
मान लो हम बन जाएँ एक फैक्ट्री....
फिर क्या होगा कामरेड?
मान लो हम एक जान हों कामरेड
एक ही मांग और एक ही समवेत स्वर
एक हो फैक्ट्री,एक हो ताकत
हम कोई सपना नहीं देख रहे हैं कामरेड...
यदि
एक
हो फैक्ट्री और दिल से मिल जाएँ दिल
हड़ताल करें हम और सैकडों हो जाएँ परचम
तीन दिन तीन रात
क्यों नहीं मुमकिन कामरेड?
एक हो फैक्ट्री एक हो यूनियन
दिल से मिला कर चलें दिल
हल्ला बोलें दस दस इलाकों में साथ साथ
एक ही दिन,कामरेड....
एक दिन कामरेड
बस एक दिन कामरेड
हम लाखो लाख हैं गिनती में
दिल से मिला कर दिल
जुट जाएँ जब हड़ताल पर
तो कपास रह जायेगा कोरा कपास ही
मिल हो जायेगी ठप
कपास रह जायेगा कोरा कपास ही
कपास नहीं बन पायेगा कपडा
इन्द्रधनुष कि तरह चमचमाती फैक्ट्री

तोड़ देगी लडखडा कर दम
सड़कें हो जाएँगी सुनसान
बच्चे नहीं जा पाएंगे स्कूल
नहीं चल पायेगी कोई बस
आकाश भी साध लेगा चुप्पी
उडेंगे नहीं विमान
सन्नाटे में डूब जायेगी हवाई पट्टी...
बस एक दिन कामरेड
यदि कर दे हम हड़ताल
गाने लगे एक स्वर में विरोध गान
बस एक दिन कामरेड...
देखना

थर थर काम्पने लगेंगे
शोषक और पूंजीपति...

अनुवादः यादवेन्द्र

4 टिप्‍पणियां:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

हुक्मरान देते रहें अपना भाषण
और लोग बाग अनमने होकर लौटने लगें अपने घरों को
तो हमें समझ लेना चाहिए
कि बिखर गयी है उनकी आस और उम्मीदें


संयोग से भारत में भी आजकल स्थिति यही है.

विजय गौड़ ने कहा…

यावेन्द्र जी लम्बी अनुपस्थिति के बाद नजर आए लेकिन खूब आए। दोनों कविताओं का चयन और अनुवाद खूब ह।

निर्मला कपिला ने कहा…

सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

शिरीष कुमार मौर्य ने कहा…

आप ब्लॉग जगत के साथ साथ महत्वपूर्ण हिंदी पत्रिकाओं पर भी नज़र डालें तो पता लगता है कि इ़धर यादवेन्द्र जी सबसे समर्थ और कद्दावर अनुवादक के रूप स्थापित हुए हैं. उनके काम, रुचियों और रचनात्मक ताक़त को मेरा सलाम.