शुक्रवार, अगस्त 01, 2008

क्या पाकिस्तान के सारे लोग आतंकवादी या आई.एस.आई. के एजेंट होते हैं?

कुछ दिनों पहले मैं पाकिस्तान गया था तो वहां की ब्यूरोक्रेसी को नजदीक से देखने और उनकी कार्यशैली को महसूस करने का अवसर मिला था. उससे पहले भारतीय ब्यूरोक्रेसी से भी बोर्डर पर पाला पड़ा था. दोनों देशों के अफसर कितने काबिल हैं यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि दोनों देशों में आतंक फैलाने वाले आतंकवादियों को कोई दिक्कत नहीं होती. वे आते हैं और आराम से मासूम लोगों का कत्ल करके चलते बनते हैं. मगर कोई मासूम अगर उनके खूंखार पकड़ मे आ जाए तो भारत में वह आई.एस.आई. का एजेंट मान लिया जाता है और पाकिस्तान में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का एजेंट. दुखद यह है कि हमारे यहां कोई अंसार बर्नी नहीं है, पाकिस्तान में भारतीयों की मदद के लिए भारत का एजेंट कहलाने का कलंक लेकर भी अंसार बर्नी भारतीय लोगों की मदद करते हैं. देखिये एक और मासूम की हालत.


6 साल पहले बेहतर कमाई का सपना लिए महज 40 दिन की एकमात्र बेटी को पाकिस्तान छोड़ मोहम्मद सलीम हिंदुस्तान तो आया, लेकिन उसे अंदाजा नहीं था कि उसके लौटने की राह उतनी आसान नहीं होगी। संसद पर हुए हमले के बाद खुफिया एजंसियों की सक्रियता के चलते वह हिंदुस्तान में ही फंस गया। आईएसआई एजंट के रूप में भारत में जासूसी के आरोप में उसे नोएडा से गिरफ्तार कर लिया गया। गुनाह कबूल कर 6 साल जेल काटने के बाद उसे पाकिस्तान भेजने का कोर्ट ऑर्डर हो गया। पूरे परिवार समेत उसकी वापसी की राह देख रही बेटी अब 8 साल की हो गई है। हालांकि घर वापसी की राह अब भी उसे हवालात की सलाखों के पीछे से उतनी की कठिन दिख रही है, जितनी पहले थी।


पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रहीमयार खां कस्बे का रहने वाला मोहम्मद सलीम हिंदुस्तानी सरबजीत की तरह यूं ही शराब पीकर सीमा पार नहीं कर गया था। अक्टूबर 2001 में अटारी बॉर्डर से होकर ड्राई फ्रूट बेचने वह दिल्ली आया था। 13 दिसंबर 2001 को संसद पर आतंकवादी हमला हो गया। खुफिया एजंसियों की धरपकड़ अभियान के चलते सलीम पुरानी दिल्ली का होटल छोड़ नोएडा आ गया। यहां वह सेक्टर-37 में एक ढाबे पर काम करने लगा। हालांकि वह ज्यादा दिन तक स्थानीय खुफिया इकाई की नजर से बच नहीं पाया। पुलिस की मदद से टीम ने उसे 22 जून 2002 को गिरफ्तार कर लिया। उस पर अवैध तरीके से भारत में रहने व जासूसी करने का आरोप लगाया गया। कोर्ट की तरफ से सलीम को मुहैया करवाए गए ऐडवोकेट इजलाल अहमद बर्नी ने बताया कि जिस समय उसे गिरफ्तार किया गया था, उस समय उसका वीसा समाप्त होने में एक दिन का समय बाकी था। उसे फंसाने के लिए फर्जी तरीके से दस्तावेज़ तैयार किए गए। बर्नी ने बताया कि अदालती कार्रवाई लंबी खिंचने के कारण जल्द रिहाई के लिए सलीम ने सभी आरोप स्वीकार कर लिए। अदालत ने उसे 6 साल की कैद व 20 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। 2 जुलाई 2008 को सज़ा पूरी होने से पहले 1 जुलाई को उसने जुर्माने की रकम जमा करवा दी। बावजूद इसके पुलिस उसे 7 जुलाई को जेल से रिहा करवा कर बाढ़मेर चेक पोस्ट पर लेकर गई। वहां चेक पोस्ट बंद हो जाने के कारण उसे बाघा बॉर्डर ले जाया गया, लेकिन वहां उनके दस्तावेज स्वीकार नहीं किए गए। पाकिस्तानी चेक पोस्ट ने सलीम को वापस भेजने के दस्तावेज़ लाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के जरिए कहा।


(सौजन्य - नवभारत टाइम्स)

6 टिप्‍पणियां:

admin ने कहा…

अगर किसी तालाब की सारी मछलियां गन्दी हो जाएं, तो फिर तालाब का वजूद ही नहीं बचेगा।

संजय बेंगाणी ने कहा…

मामला जब दो देशों का हो और वह भी कट्टर दुश्मन तो एक दुसरे देश में ऐसे नहीं आया-जाया जाता जैसे बगीचे की सैर करने निकले हो.


मोहम्मद सलीम क्या कागज-पत्र लेकर आया था की भारत में वेपार करना है?

भारत के कितने मछवारे व सैनिक पाक की जेलों में सड़ रहे है?

यह तय करना भी सरल नहीं की कौन शरीफ है और कौन जासूस. जब तक दोनो देशो में दुशमनी रहेगी, अमानवीय व्यवहार भी होता रहेगा.

Pankaj Parashar ने कहा…

मैंने जिस बात की ओर इशारा किया उसको आपने बिल्कुल नजरअंदाज क्यों कर दिया बंधु?
अगर भारत के मछुआरे और सैनिक पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं तो उनके अधिकारों के लिए एक पाकिस्तानी अंसार बर्नी आवाज उठा रहा है, लेकिन भारत में कोई अंसार बर्नी है पाकिस्तानी सैनिकों और मछुआरों के लिए? भारतीय मुसलमानों का आज भी पाकिस्तान से रिश्ता-नाता है, लेकिन पाकिस्तानी हिंदुओं का दर्द मैंने वहां देखा है-उनका कहना था कि हम अगर भारत में शादी-ब्याह करना चाहें तो वहां के हिंदू भी हमें अछूत समझते हैं. यह संभव नहीं है. ऐसे में जरा सोचिये, हिंदू तमाम हिंदुवादी राजनीति के बावजूद आज भी कितने गए बीते हैं कि अलग राष्ट्र के कारण उनसे कोई नाता-रिश्ता नहीं रखना चाहते.
बाकी मासूम लोगों के साथ अमानवीय सलूक करने के सरकारी रवैये का अगर आप समर्थन करते हैं, तो फिर आपके ऐसे पवित्र विचारों के लिए प्रार्थना ही की जा सकती है.

संजय बेंगाणी ने कहा…

अमानवीय व्यवहार का समर्थन कर रहा हूँ!!!!!?


मैने केवल कारण बताया है. और बीना कागजो के भारत आने की जरूरत क्या है? क्या सभी आने वाले मुलाकातियों को जेलो में डाल दिया गया है?

अगर हिन्दुओं की हालत पाकिस्तान में बदतर है तो आपने भी वही बात कही है जो हिन्दुत्त्ववादी कहते आए है.

आप एक अंसार बर्नी की बात कर रहें हैं यहाँ तो ढ़ेर के ढ़ेर मानवअधिकारवादी संगठन है.

Pankaj Parashar ने कहा…

भाई साहब,
जहां तक हिंदुत्ववादियों की बात है तो यह मुद्दा उठाने के पीछे की उनकी अपनी राजनीति है और उस गलीज राजनीति के नाम से भी मुझे परहेज है. उनके लिए तस्लीमा तो स्वीकार्य हैं, मगर मकबूल फिदा हुसेन स्वीकार्य नहीं हैं. उनकी दोधारी तलवार की बात मत कीजिये, जो ताउम्र हिंदूवादी राजनीति में होने के बावजूद मुसलमान होने के कारण सिकंदर बख्त को नहीं अपना सके.

पाकिस्तान में हिंदुओं की बदतर हालत के पीछे का जो सच है वह आप चाहें तो बी.बी.सी. हिंदी डाट काम पर महबूब आलम और हफीज चाचड़ के रिपोर्टों में देख सकते हैं. मानवता के खिलाफ जहां भी, जो भी समुदाय है, इनसानियतपसंदों को उसका विरोध करना चाहिए.

Gajendra ने कहा…
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