बुधवार, नवंबर 25, 2009

किसकी बात सच है यह कैसे पता चलेगा?


अजीब गड़बड़झाला है. पिछले दो दिनों से हर अखबार इंडियन रीडरशिप सर्वे के हवाले से यह दावा कर रहा है कि वह नंबर वन है। जैसे चुनाव में हर नेता दावा करता है कि वह भारी मतों से जीत रहा है। मगर जब नतीजा आता है तो पता चलता है कि उसकी बीवी ने भी उसे वोट नहीं दिया और जमानत तक जब्त हो गई. आपको नहीं लगता कि एक नंबर के इस खेल में दो नंबर का मामला साफ है यानी एक अलावा बाकी सब साफ झूठ बोल रहे हैं और वह भी शान से। पाठक बिचारा तो हिसाब लगाने से रहा कि कौन किस नंबर पर विराज रहा है।

नंगों के शहर में जबसे लौंड्री की दुकान खुली है, बेचारा दुकानदार झींक रहा है-कभी खुद पर कभी शहर पर। हर अखबार कह रहा है कि वह नंबर वन है, मगर विज्ञापनदाता बाबू आज भी मेहरबान इंगरेजी पर ही हैं। पाठक कम, कमाई ज्यादा तो इंगरेजी के ही नाम है। अब आप अपने नंबर वन का पुंगी बनाकर जहां मर्जी वहां उपयोग करें।

एक मित्र ने कहा कि सूचना के अधिकार के लिए अभियान चलाते हुए हलकान हुए जा रहे अखबारों से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे अपने यहां इस कानून को लागू करेंगे? क्या वे बताएंगे कि कौन-सी खबर बिकी हुई है और कौन-सी अनबिकी? क्या वे यह बताएंगे कि कौन-सी खबर विज्ञापनदाता के दबाव में तोड़ी-मरोड़ी हुई है और कौन-सी सरकार को खुश करने के लिए? जाहिर है नहीं। वे यह कानून कतई लागू नहीं करेंगे। तब वे क्यों पर उपदेश कुशल बहुतेरे की रट लगाए जा रहे हैं? जाहिर है, उपदेश सिर्फ दूसरों को देने के लिए होता है। सो भैया ये अखबार भी उपदेश दूसरों को दिए जा रहे हैं। ले लो भई, दो-दो टके का उपदेश (अखबार)-सुबह-सुबह बांचो चाय की दुकान पर, नाई की दुकान पर पेड खबरों का विशेषणकोश। धन्य हैं हमारे हाथी ब्रांड गोयबल्सी अखबार.

2 टिप्‍पणियां:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

चौकी के बात चौका प ना करे के भाई!

Alok Nandan ने कहा…

पंकज जी आपका ब्लौग बहुत ही अच्छा लगा...धन्यवाद