हैरतअंगेज बात है कि वे अचानक अछूत हो गए। इसी आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ी पिछले सालों में खूब अच्छी तरह बिके थे. अच्छी कीमत पर बिके थे. तब वे ठीक थे, क्योंकि मुंबई में तब सब ठीक था. अब न मुंबई पहले जैसी रही, न पाकिस्तान का लाहौर, रावलपिंडी और पेशावर पहले जैसा रहा. सियासी स्तर पर जो तब्दीलियां हुईं, उसके कारण सब कुछ बदल गया. दोनों देशों के बीच पूरा समीकरण गड़बड़ हो गया. दूसरी ओऱ पाकिस्तान से नाटकों के दल भारत आ रहे हैं. गायकों की टोलियां भारत आ रही है. राहत फतेह अली, गुलाम अली जैसे ग़ज़ल गायक भारतीय जनता के बीच अपनी आवाज का जादू बिखेर रहे हैं.
संगीत, नाटक, संस्कृति और पत्रकारिता के स्तर पर अमन की आशा व्यक्त की जा रही है. मगर दूसरी ओर खेल के स्तर पर नफरत और गिले-शिकवे के आधार पर फैसले किये जा रहे हैं.ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि जब खिलाड़यों से ऐसी नफरत तो फिर वहां के कलाकारों को भारत क्यों बुला रहे हैं? कविता-कहानी और पत्रकारिता के स्तर पर अमन की आशा जैसा मुहिम चला रहे हैं, मगर खेल में नफरत दिखा रहे हैं? कलाकार स्वीकार्य और खिलाड़ी अछूत? ऐसा वर्गीकरण क्यों?
यदि इसी तरह का व्यवहार हमारे खिलाड़ियों के साथ पाकिस्तान करता, तो हम किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करते? यदि हमारे खिलाड़ियों को लाहौर बुलाकर वे लोग नीलामी से बैरंग लौटा देते, तो हम इसी तरह चुप रहते?
पाकिस्तान की सरकारों ने आतंकियों को शह दी, आतंकी दोनों देशों के मासूम लोगों की जान रोज-ब-रोज ले रहे हैं. आत्मघाती हमले कर रहे हैं और इन तमाम घटनाओं के बीच भी नेता सुरक्षित हैं, बेचारी जनता मर रही है. नेता सियासत कर रहे हैं और दोनों मुल्कों की जनता भुगत रही है.
1 टिप्पणी:
संगीत, नाटक, संस्कृति और पत्रकारिता के स्तर पर अमन की आशा व्यक्त की जा रही है. मगर दूसरी ओर खेल के स्तर पर नफरत और गिले-शिकवे के आधार पर फैसले किये जा रहे हैं.
bahut sateek likha hai, vicharneeya..
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