बराक ओबामा की विक्ट्री स्पीच सुनने के बाद अपने अखबार दैनिक भास्कर के लिए इस कविता के एक अंश का अनुवाद करने को जब कहा गया, तो मैं पूरी कविता ही अनूदित करने का लोभ संवरण नहीं कर पाया. पेश है ब्लाग की दुनिया के पाठकों के लिए यह कविता-
साठ के दशक के दौरान हमने हल्ला मचाया हमें न्याय दो
हमारे हाथों में तख्तियां थी और होठों पर सवाल
सवाल ऐसे कि आखिर कब तक अमेरिकी सपने से बाहर रहेंगे हम?
बसों और व्यवसायों का बॉयकाट करते हुए हम
धरनों और प्रदर्शनों की हद तक गए
दुश्मनों के दुश्मन और दोस्तों के दोस्त
नीग्रो जाति अचानक अपने जेहनी उनींदेपन से जगी
देश भी साथ ही आगे बढ़ा और जनता ने गाया-
हम होंगे कामयाब लेकिन...कब?
तबसे क्या कुछ बदला है?
अभी कौन हमारा विरोध कर रहा है?
हमारे तमाम लोग तकलीफों में जीते हैं
ताउम्रअगर आप उन्हें कहें कि यीशु प्यार करते हैं
तुम्हें तो वे नाराज होकर कहेंगे कि मत लो उनका नाम
हमारे नौजवान अपनी मांओं के बटुए छीनते हैं
बलात्कार, लूट और गोलीबारी में बच्चों को मारते,
भाइयों को मारते हुए कौन हमें रोक रहा है अब?
अपनी मानवीय गरिमा से हमें कौन गिरा रहा है?
हजारों योग्य लोग सड़कों के उदास किनारों पर पड़े हैं
पेड़ों से लटकने की बजाय...और राष्ट्र आगे बढ़ता रहता है
लोग गाना गाते रहते हैं-
हम होंगे कामयाब-लेकिन कब?
पढ़े-लिखों और अभिजनों के पास समय नहीं है
इतने व्यस्त हैं वे अपनी निजी योजनाओं में
कि वे मदद का हाथ नहीं बढ़ा सकते
हममें से ज्यादातर को कैसी जिंदगी मिली?
क्या कुछ मूल्यवान छूटा हमसे?
क्या ढेरों पैसे और अच्छा वक्त हो तो
आप और मैं बेहतर व्यक्ति हो जाते हैं?
या यह हमारा अपना नकचढ़ा शासक वर्ग है
क्या हम तेजी से अपनी जमीन खोते जा रहे हैं?
माना हमने तरक्की की है और यह निश्चय ही महज संयोग नहीं
लेकिन कुछ अर्थों में वह भी हमारी दुखती रग हो गई है
असली तरक्की, मतलबपरस्ती और सनक से बाधित
हम उनकी तरह होने की कोशिश करते हैं
आततायी जब हमारी कसौटियां तय करता है
तो हम सिर्फ नकलची बनकर रह जाते हैं
लिहाजा देश को आगे बढ़ने दें और लोगों को गीत गाने दें
आर्थिक ताकत का मतलब तभी है
जब हम अपने ही भाइयों के चेहरे पर न थूकें
आततायी की पूजा करने का मतलब है
अंतत: उसकी नकल करना
अगर यह रवैया अभी नहीं बदलता है
मेरे भाइयो, मेरी बहनो
तो मुझे बताइये आखिर कब बदलेगा यह?
हमारे हाथों में तख्तियां थी और होठों पर सवाल
सवाल ऐसे कि आखिर कब तक अमेरिकी सपने से बाहर रहेंगे हम?
बसों और व्यवसायों का बॉयकाट करते हुए हम
धरनों और प्रदर्शनों की हद तक गए
दुश्मनों के दुश्मन और दोस्तों के दोस्त
नीग्रो जाति अचानक अपने जेहनी उनींदेपन से जगी
देश भी साथ ही आगे बढ़ा और जनता ने गाया-
हम होंगे कामयाब लेकिन...कब?
तबसे क्या कुछ बदला है?
अभी कौन हमारा विरोध कर रहा है?
हमारे तमाम लोग तकलीफों में जीते हैं
ताउम्रअगर आप उन्हें कहें कि यीशु प्यार करते हैं
तुम्हें तो वे नाराज होकर कहेंगे कि मत लो उनका नाम
हमारे नौजवान अपनी मांओं के बटुए छीनते हैं
बलात्कार, लूट और गोलीबारी में बच्चों को मारते,
भाइयों को मारते हुए कौन हमें रोक रहा है अब?
अपनी मानवीय गरिमा से हमें कौन गिरा रहा है?
हजारों योग्य लोग सड़कों के उदास किनारों पर पड़े हैं
पेड़ों से लटकने की बजाय...और राष्ट्र आगे बढ़ता रहता है
लोग गाना गाते रहते हैं-
हम होंगे कामयाब-लेकिन कब?
पढ़े-लिखों और अभिजनों के पास समय नहीं है
इतने व्यस्त हैं वे अपनी निजी योजनाओं में
कि वे मदद का हाथ नहीं बढ़ा सकते
हममें से ज्यादातर को कैसी जिंदगी मिली?
क्या कुछ मूल्यवान छूटा हमसे?
क्या ढेरों पैसे और अच्छा वक्त हो तो
आप और मैं बेहतर व्यक्ति हो जाते हैं?
या यह हमारा अपना नकचढ़ा शासक वर्ग है
क्या हम तेजी से अपनी जमीन खोते जा रहे हैं?
माना हमने तरक्की की है और यह निश्चय ही महज संयोग नहीं
लेकिन कुछ अर्थों में वह भी हमारी दुखती रग हो गई है
असली तरक्की, मतलबपरस्ती और सनक से बाधित
हम उनकी तरह होने की कोशिश करते हैं
आततायी जब हमारी कसौटियां तय करता है
तो हम सिर्फ नकलची बनकर रह जाते हैं
लिहाजा देश को आगे बढ़ने दें और लोगों को गीत गाने दें
आर्थिक ताकत का मतलब तभी है
जब हम अपने ही भाइयों के चेहरे पर न थूकें
आततायी की पूजा करने का मतलब है
अंतत: उसकी नकल करना
अगर यह रवैया अभी नहीं बदलता है
मेरे भाइयो, मेरी बहनो
तो मुझे बताइये आखिर कब बदलेगा यह?
-लेडी डी26
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