शुक्रवार, नवंबर 21, 2008

पूरे पाकिस्तान में 'निराला' की मिठाई और रामापीर का मेला...































कराची के बनारस चौक, सहारनपुर कालोनी, यू.पी. कालोनी-वहां की बोली-बानी, पहनावा और खान-पान से जरा भी नहीं लगता कि आप बनारस में नहीं हैं. विभाजन के इतने बरस के बाद भी सब कुछ जस के तस है. अपने यहां निराला कहते ही कवि महाप्राण निराला की याद आती है, मगर जिस तरह दिल्ली में नाथू स्वीट्स और अग्रवाल स्वीट्स की पूरी चेन है उसी तरह निराला नामक मिठाई की दुकान की पूरी चेन है-पूरे पाकिस्तान में. वहां के लोगों के मन में अंधविश्वास की हद तक यह बात पैठी हुई है कि बेहतर मिठाई तो सिर्फ हिंदू ही बना सकता है। इसलिए वहां मिठाई की दुकानों में सिंध के हिंदू कारीगरों की मांग बहुत रहती है। बहरहाल, यहां यह बताते चलें कि इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान में इस वक्त तकरीबन पच्चीस लाख से ऊपर हिंदुओं की संख्या है और रामापीर का जो मेला सिंध में लगता है, उसमें बढ़-चढ़कर हिंदू भाग लेते हैं. रामापीर के मेले में असल में दलित वर्ग के हिंदुओं की भागीदारी ज्यादा रहती है. उच्च और धनी तबके के लोग वहां से पहले ही भाग आए या दंगों में मारे गए या मार दिए गए. बचे हैं दलित वर्ग के अधिकांश लोग. उनकी कहानियां हम विस्तार से आपको बताते रहेंगे. फिलहाल आपको दिखा रहे हैं रामापीर मेले की कुछ तस्वीरें....

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