आतंकी हमले ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को एक बार फिर दहलाकर रख दिया है। संसद पर हुए हमले को छोड़ दें तो आतंकवादियों ने इतने व्यापक हमले अब तक नहीं किए थे। अब तक आतंकवादी सिलसिलेवार बम धमाके करते रहे हैं, लेकिन पहली बार उन्होंने होटलों और अस्पतालों में घुसकर स्वचालित हथियारों से गोलीबारी की है और लोगों को बंधक बनाया है। मुंबई में आतंकियों ने हमले भी कुछ अलग तरीके से किए हैं। बम धमाके करने के बाद उन्होंने कई जगहों को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की है। जिसके बाद कभी न थमने वाली मुंबई की रफ्तार दहशत के मारे थम-सा गया है। पिछले कई महीनों से देश ने जितने आतंकवादी हमले झेले हैं, उसके बाद सुरक्षा व्यवस्था को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि एक लुंजपुंज देश की बनती जा रही है। इसकी तस्दीक इस बात से भी होती है कि मुंबई की इन आतंकवादी घटनाओं के फौरन बाद इंग्लैंड की क्रिकेट टीम बीच में ही दौरा बीच में छोड़कर स्वदेश लौट रही है और भारत भ्रमण पर आने वाले विदेशी पर्यटक अपने कार्यक्रम को मुल्तवी करने लगे हैं।
मुंबई के पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देखें तो आतंकवादी होटलों में विदेशी मेहमानों के पासपोर्ट की तलाशी ले रहे थे और ब्रिटिश तथा अमेरिकी नागरिकों को बंधक बना रहे थे। जिससे साबित होता है कि इन देशों की सुरक्षा व्यवस्था अब इतनी पुख्ता और सख्त है कि वहां किसी भी तरीके से आतंकी नृशंस घटनाओं को अंजाम देने में बेहद कठिनाई महसूस कर रहे हैं। इसलिए इन देशों के आम नागरिकों को आतंकवादी अब दूसरे देशों में निशाना बनाने लगे हैं। आतंकवादियों ने ताज और ओबेरॉय होटल को काफी सोच-समझकर निशाना बनाया है, क्योंकि इन होटलों में सैकड़ों विदेशी पर्यटक ठहरते हैं। इसलिए सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञों को यह कहना बिल्कुल सही है कि आतंकवादियों ने अनायास इन होटलों को निशाना नहीं बनाया। यह सब जान-बूझकर और काफी सोच-समझकर किया गया है। कुछ टीवी चैनलों को ईमेल भेजकर डेकन मुजाहिदीन नामक संगठन ने इन घटनाओं की जिम्मेदारी ली है, जिसका नाम इससे पहले कभी नहीं सुना गया। इसलिए आतंकवादियों की यह एक रणनीति भी हो सकती है, ताकि सही दिशा में चलने वाली जांच को गुमराह किया जा सके। आतंकी हमलों के बाद सरकार के रटे-रटाए जुमले सुन-सुनकर आम जनता यह मानने लगी है कि हुक्मरानों की नजर में आम लोगों की जान की कीमत कुछ खास नहीं है। इसलिए लगातार हो रही आतंकवादी घटनाओं के कारण देश के भीतर जन-आक्रोश बढ़ता जा रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आतंकवादी घटनाओं के बाद इससे निपटने के लिए जितने भी तरीकों पर चर्चा होती है, उसके बारे में अब तक के अनुभवों से यही दिख रहा है कि सारी कवायद शायद चर्चाओं तक ही सिमटकर रह जाता है। वक्त का यही तकाजा है कि आतंकवाद पर किसी भी तरह के सियासत को परे रखकर पूरा ध्यान गंभीरता से ठोस कार्रवाई पर केंद्रित किया जाए।
6 टिप्पणियां:
टाइटल गलत है, होना चाहिये कि "भारत एक लुंजपुंज देश है ही… पहले भी रहा (मुगलों और अंग्रेजों के समय से), आगे भी रहेगा (जब तक भ्रष्ट नेता और कांग्रेस राज करेगी)…", बाकी सब ठीक लिखा है… भाई वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दीजिये ना…
यह गंभीर चिंतन का विषय है. राजनीतिक दलों का एक दूसरे पर उंगली उठाना हमें यहांतक खींच लाया कि हमारा प्रशासनिक-तंत्र ही चरमरा गया. कानून आप कैसे भी बना लीजिये, जो मरने पर स्वयं उतारू हैं उनका क्या बिगाड़ लेंगे. प्रश्न है हम अपनी सुरक्षा कर पाने में सक्षम क्यों नहीं हैं? हम कुछ घटित हो जाने के बाद क्यों चौंकते हैं? हम हर समय सतर्क क्यों नहीं रहते और देश-दुश्मन दहशत गर्दों को रंगे हाथ क्यों नहीं पकड़ पाते?
उन्होंने जंग में भारत को हरा दिया है.
अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी....
उन्होंने जंग में भारत को हरा दिया है.
अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी....
आप ही भारत सुरेशजी, शब्द कहें तेजस्वी.
आप स्वयं नैतृत्व दें, आप ही बनें यशस्वी.
हम ही बनें यशस्वी, अपना देश संभालें.
बढें धर्म के पथ पर,अर्थ-काम सब पा लें.
कह साधक कवि, सुनलें पस्त नहीं है भारत.
कहें शब्द तेजस्वी बन्धु! आप ही भारत!
चिंपूलंकर भाई, देश लुंजपुंज है या व्यवस्था। सवाल है लेकिन ऐसी स्थिती में नेताओं पर विचार करने की आवश्यकता है।
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