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कल मेरे दफ्तर की एक सुंदर-सी कन्या संवाददाता को इस बात से बड़ी कोफ्त हुई कि कुछ मनचले लड़के, जो रास्ते चलती लड़कियों को छेड़ रहे थे, उन पर फब्तियां कस रहे थे, वे मनचले लड़के उन्हें देखते ही बोले, “यार ये तो आंटी हैं।“ ... और ये कहकर ल़ड़के आगे बढ़ गए। यह बात उस कन्या संवाददाता को बेहद नागवार गुजरी। उन्हें लगा कि क्या वे आंटी दिखती हैं? अरे वे तो अभी महज उन्नीस की हैं (आप जानते हैं शरीफ लोग लड़कियों से उम्र नहीं पूछते)। अरे, अब वे छेड़नीय भी नहीं रहीं? वे तो बाकायदा प्रियदर्शनी हैं, सो दर्शनीय तो हैं ही (उन्हें लगता है)। वे ऐसी अछेड़नीय तो खैर नहीं ही हैं। वे इसी बात से दुखी हो गईं कि लड़कों ने उन्हें छेड़ने के लायक भी नहीं समझा। अजीब है भई, लड़की को कोई छेड़ दे तो पुलिस और अभिभावक दुखी हो जाते हैं और न छेड़े तो लड़की दुखी हो जाती हैं।
कभी-कभी मुझे लगता है कि हरिशंकर परसाई को अभी कुछ दिनों तक जीना चाहिए था और वह भी अंतकाल दिल्ली में जरूर गुजारना चाहिए था. क्या पता कोई छेड़ेच्छुक युवती उन्हें पसंद कर लेतीं। सबसे बड़ी बात यह कि यहां की उर्वरा भूमि में उनकी व्यंग्य-फसल ज्यादा लहलहातीं और वे लहक-लहक कर हिंदी साहित्य को नए-नए मुद्दों पर लहकाने का कमाल दिखाते। ऐसा कमाल कि श्रीराम सेना, बजरंग दल वगैरह को कभी खाली नहीं बैठना पड़ता। तख्ती वालों की कितनी तख्तियां बिकतीं, कितना शाकाहारी विरोध प्रदर्शन होता और दिल्ली की जनता को एक लेखक की रचना के प्रताप से इस जाड़े में बहुत ताप मिलता। पर हाय अकेला छोड़ गए, बिल्कुल अकेले-अकेले।
एक बात आपके कान में मैं धीरे से कहता हूं, किसी से कहिएगा नहीं। पिछले दिनों मुझे पता चला है कि मैं वयोवृद्ध हूं। मैंने अपने कुंवारे दोस्तो को कहा, हठधर्मियों रहो कुंवारे। तुम अभी तक कुंवारे के कुंवारे ही रहे और इधर मैं वयोवृद्ध तक बन बैठा। अब ये मत कहिए कि आपकी उम्र तो अभी बत्तीस साल है। आप कैसे वयोवृद्ध हो गए? तो जनाब, बात यह है कि मुझसे दस-बारह साल उम्र में बड़े कंडक्टर और आटोरिक्शा वाले क्वीन विक्टोरिया की तरह नाइटहुट देने के अंदाज में मुझे अंकल का खिताब देते हैं। मैं इसे बखुशी ग्रहण करता हूं। पता नहीं वे अंकल शब्द का मतलब कितना जानते हैं, पर वे चतुर-सुजान इतना तो जरूर जानते हैं कि अंकल कहो तो साहब लोगों की बांछें खिल जाती हैं। हालांकि ये और बात है कि मुझे आज तक नहीं पता चला कि बांछें होती कहां हैं औऱ कैसे खिलती हैं या खिलखिलाती हैं। तो साहब, आटोवाले बड़े प्यार से मेरा अंकलीकरण संस्कार कर चुके हैं-कुछ-कुछ नामकरण संस्कार की तरह। यकीन मानिए, मुझे बड़ा मजा आता है अंकल सुन-सुनकर। भोपाल में तो तमाम लोग मुझे कुछ इस तरह अंकल कहते थे जैसे मैं पैदाइशी अंकल हूं। जब अंकली सूरत ही हो तो कोई क्या करे-यह कहकर इस नश्वर शरीर में वास कर रहे हृदय को मैं विदारक स्थिति में जाने से बचा लेता हूं। इस भतीजामय में संसार में यदि केशवदास रहते तो शायद वे भी चंद्रवदनियों के बाबा कहि-कहि जाने पर नाराज न होते। क्योंकि नहीं छेड़े जाने की वजह से मृगलोचनियां तो पहले से परेशान चल रही हैं।
पहले-पहल जब मैं दिल्ली आया था, तो अक्सर कानों में भैणजी की कर्णप्रिय आवाज जाती थी। एक मित्र ने बताया कि ये कहना तो चाहते हैं बहन जी, पर मातृभाषिक चाशनी में पगी जीभ से बहन जी, भैणजी बनकर स्वर-ग्रंथि से बाहर आती हैं। पर अब उदारीकरण के बाद से तो भैया जब भैणजी को भैणजी कहो तो वे एकदम से गुस्सा हो जाती हैं। उन्हें अब भैणजी नहीं, भाभी जी कहलाने में गर्वानुभूति होती है। दिल्ली के इस विकास-काल में भैणजी को भाभी जी बनते देखना कितना सुखद है। यकीन न हो तो आप नए उम्र के किसी सब्जी वाले, आटो वाले से पूछकर देख लें। ज्यादा टैम न हो तो गली के नुक्कड़ वाले परचूनिए से ही पूछ लें।
इस सर्व-भाभी युग में बेटों से मुझे ग्यारह हजार वोल्ट का झटका लगा। सरोजिनी नगर मार्केट गया था, स्वेटर खरीदने। बीस-बाइस साल का लड़का मालिक की गद्दी पर बैठा था। मैंने जब स्वेटर मांगा तो उसने पचास साल के सेल्समैन से कहा, बेटे सर को फटाफट स्वेटर दिखा। अरे बेटे, ये वाली नहीं, वो जो कल माल आया है उसमें से दिखा। मैं स्वेटर देखने की जगह उजबक की तरह एक बार काउंटर पर बैठे लड़के को देखूं, तो दूसरी बार उस पचास साला सेल्समैन को। अजीब झटका लगा मुझे। यह लड़का कितने सहज भाव से बाप की उम्र के आदमी को बेटा कह रहा है और वह आदमी भी कितनी सहजता से उसको बाप की उम्र का मान रहा है। मैंने सैल्समैन की ओर इशारा करके उस बाप जी से कहा, भाई साहब, क्या आपके बच्चे इन्हीं के उम्र के हैं? अरे वाह, आपकी तो उम्र का पता ही नहीं चलता है? बहुत करीने से आपने अपनी उम्र छिपाया है। लड़का मुझे उजबक की तरह देखने लगा। उसे लगा कि मैं शायद अभी-अभी चिड़ियाघर से सीधे सरोजिनी नगर में गिरा हूं। उसका बेटा, स्वेटरों की पहाड़ निकाल कर रख चुका था। मैंने खोदकर एक चुहिया जैसा स्वेटर निकाला और जल्दी-जल्दी पैसे चुकाकर भागा।