कठिन है रहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो/बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो/तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है/मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
बुधवार, दिसंबर 09, 2009
जीता भी जा चुका इसे हारा भी जा चुका
वसुधा के ताज़ा अंक में उर्दू के मशहूर शायर शहरयार द्वारा चुनी गईं कुछ पाकिस्तानी कविताएं प्रकाशित हुई हैं। यहां पेश है मेरे मित्र काशिफ़ हुसैन ग़ायर की दो ग़ज़लें। वे पाकिस्तान के जाने-माने शायर हैं और भारत के प्रति उनके मन में गहरा सम्मान है।
एक
वो रात जा चुकी वो सितारा भी जा चुका
आया नहीं जो दिन वो गुज़ारा भी जा चुका
इस पार हम खड़े हैं अभी तक और उस तरफ़
लहरों के साथ-साथ किनारा भी जा चुका
दुख है मलाल है वही पहला सा हाल है
जाने को उस गली में दुबारा भी जा चुका
क्या जाते किस ख्याल में उम्रे खाँ गई
हाथों से जिंदगी का खि़सारा भी जा चुका
काशिफ हुसैन छोडिय़े अब जिन्दगी का खेल
जीता भी जा चुका इसे हारा भी जा चुका
दो
हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे
मैं इसी धूप में खुश हूँ कोई साया न करे
मैं भी आखिर हूँ इसी दश्त का रहने वाला
कैसे मजनूं से कहूं खाक उड़ाया न करे
आईना मेरे शबो रोज़ से वाकिफ़ ही नहीं
कौन हूँ, क्या हूँ? मुझे याद दिलाया न करे
ऐन मुमकिन है चली जाय समाअत मेरी
दिल से कहिये कि बहुत शोर मचाया न करे
मुझ से रस्तों का बिछडऩा नहीं देखा जाता
मुझसे मिलने वो किसी मोड़ पे आया न करे
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