एक बार जोश साहिब की वह महबूबा, जिसे समंदर में डूबने से बचाने के लिए तैरना नहीं जानते हुए भी मुंबई में जोश साहिब पानी में कूद पड़े थे, दिल्ली आई। जोश साहिब ने चार-पांच दिन उसके साथ गुज़ारने का प्रोग्राम बना लिया। दोस्तों ने उनके लिए शाहदरा में रहने की व्यवस्था कर दी तथा घूमने के लिए एक मोटरकार की भी। जोश साहिब ने अपनी बीवी से दो-एक मुशायरों में जाने का बहाना किया और घर से शाहदरा अपनी महबूबा के पास आ गए। एक शाम वह अपनी महबूबा को लेकर नई दिल्ली में घूम रहे थे कि उनकी बेग़म ने उन्हें देख लिया।
वह रुके नहीं, गाड़ी भगाकर ले गए। कुछ देर बाद वह अपने दोस्त कुंवर महिन्दर सिंह बेदी के पास पहुंचे, उन्हें सारी बात बताई और कहा, ‘जैसे भी हो, मुझे बचाओ वरना बेग़म मुझे ज़िंदा ही दीवार में चिनवा देगी।’ बेदी साहिब अगली सुबह ही जोश साहिब के घर गए, तो बेगम जोश ने कहा, ‘वह मरदूर मुझसे मुशायरे का बहाना करके गया है, लेकिन उस मुंबई वाली चुड़ेल को लेकर यहीं दिल्ली में घूम रहा है। कल कनाट प्लेस में अपनी आंखों से मैंने उन्हें देखा है।’ बेदी साहिब ने कहा, ‘भाभी मेरी तरह आप को भी धोखा हुआ है।
कल मैंने भी उन्हें कनाट प्लेस में देखा था, लेकिन क़रीब जाने पर पता चला कि वह जोश साहिब की शक्ल से मिलता-जुलता कोई दूसरा व्यक्ति है।’ बेगम जोश को कई तरह की बातों से बेदी साहिब ने विश्वास दिलाने की कोशिश की। वह शांत तो हो गईं, लेकिन उनका शक़ दूर नहीं हुआ। लौटकर बेदी साहिब ने जोश साहिब को सारी कहानी सुनाई तथा कहा कि बेगम साहिबा की पूरी तस्सली के लिए कोई और ड्रामा भी खेलना पड़ेगा। एक यह कि जिन दो मुशायरों में जोश साहिब ने जाना था, उनमें से एक कैंसिल हो गया है तथा वह कल दिल्ली लौट रहे हैं।
ऐसी झूठी तार बेगम जोश को भिजवा दी गई। दूसरे दीवान सिंह म़फ्तून साहिब अपने अख़बार रियासत की साठ-सत्तर प्रतियां एक बड़े रेशमी रूमाल में लपेटकर बेगम जोश से मिलेंगे और कहेंगे कि मैं आपका शक़ दूर करने के लिए धार्मिक पुस्तक साथ लाया हूं। मैं इस पवित्र पुस्तक की क़सम खाकर कहता हूं कि जोश साहिब अपनी किसी महबूबा के साथ दिल्ली में नहीं हैं, बल्कि मुशायरें में गए हैं। इस स्कीम के तहत म़फ्तून ने बेगम जोश के सामने ठीक ऐसा ही किया। झूठी क़सम खाई और अपने दोस्त को उसकी बेगम के कहर से बचाया।
सौजन्यः डॉ.केवल धीर
5 टिप्पणियां:
हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होना माना जाता है, १८ औरतों का हाथ होने पर तो तूफ़ानी सफलता मिलनी ही थी जोश साहब को
अच्छा वाकया सुनाया आपने , जोश जी के होश उडने का ।
यह भी खूब रही..बेहतरीन वाकया.
यह डर नहीं एक बेवफ़ा की शर्म है
कौन नहीं डरता है भाई?
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अदभुत है हमारा शरीर।
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा?
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