.jpg)
वेतन विसंगतियों को दूर करने को लेकर सार्वजनिक क्षेत्र के तेरह तेल एवं गैस कंपनियों के पचास हजार अधिकारियों के हड़ताल पर चले जाने के कारण पूरे देश में पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है। न सिर्फ सड़क परिवहन बल्कि हवाई उड़ानें भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। एक तरफ तेल कंपनियों के अधिकारी अपनी मांगों को लेकर जहां अडिग नजर आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार हड़ताली कर्मचारियों को बर्खास्त करने की धमकी देकर काम पर वापस बुलाना चाहती है। ये दोनों ही स्थितियां व्यापक जनहित के खिलाफ है और इससे साफ तौर पर ऐसा लगता है कि सरकार और हड़ताली कर्मचारी-दोनों ने इस मुद्दे पर दूरदर्शिता और धैर्य से काम नहीं लिया। जिसका खामियाजा अंतत: किसी भी अन्य हड़ताल की तरह अकारण आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। आलम ये है कि यदि दुर्भाग्य से यह हड़ताल और लंबी खिंच गई, तो पूरे देश में पेट्रोलियम पदार्थों को लेकर हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
सरकार का यह ऐलान निराशाजनक है कि वह हड़ताली कर्मचारियों के साथ हुई वार्ता विफल हो जाने के बाद कार्रवाई के तौर पर अब वह बर्खास्तगी का कदम उठा सकती है। जबकि आर्थिक मंदी के वैश्विक असर के कारण पहले ही निजी क्षेत्रों में कर्मचारियों की छंटनियों का दौर चल रहा है। ऐसे में सरकार से यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वह सहानुभूतिपूर्वक हड़ताली कर्मचारियों की मांगों पर विचार करे और कर्मचारियों को भी मौजूदा परिस्थितियों के तमाम पहलुओं को अनदेखा करके अडि़यल रवैये की जगह संवाद की गुंजाइश को खत्म नहीं करना चाहिए। गौरतलब है कि शुरू से छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से कर्मचारियों के बीच प्रसन्नता की जगह भेदभाव और पारदर्शिता न बरते जाने के आरोप लगते रहे हैं। ट्रक ऑपरेटरों की हड़ताल के कारण जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ने और कहीं-कहीं इसके बावजूद किल्लत पैदा होने होने के कारण पहले से ही परेशान आम जनता को पेट्रोलियम पदार्थों की दिक्कतों ने बेजार कर दिया है। तब भी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के तेल कंपनियों के अधिकारियों की हड़ताल की वजह से अस्त-व्यस्त परिवहन व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कोई सर्वस्वीकार हल ढूंढ़ने के लिए शायद संवेदनशीलता दिखाने में विलंब कर रही है।
1 टिप्पणी:
सरकारी कर्मचारी "भूखे भेड़िये" हैं… 30-40 हजार की तनख्वाह, हजारों रुपये की रिश्वत खाकर, निकम्मेपन की हद तक कामचोर सरकारी कर्मचारी हड़ताल करें तो यह देश की जनता का दुर्भाग्य है… और यह "बीमारी" डॉक्टर, वकील तक में समाई हुई है, जनता की परवाह किसी को नहीं है, सभी को "अधिकार" मालूम हैं, "कर्तव्य" नहीं…
एक टिप्पणी भेजें