गुरुवार, जनवरी 15, 2009

पाक से आर्थिक संबंध का समीकरण


गृह मंत्री पी चिदंबरम की इस चेतावनी को मुंबई हमले के बाद बयानबाजियों की श्रृंखला में एक और बयान मानने की भूल नहीं करनी चाहिए कि यदि पाक हमें सहयोग नहीं करता है, तो हम उसके व्यापारियों को क्यों प्रोत्साहित करें? उनके पर्यटकों की आवभगत क्यों करें और अपने पर्यटकों को पाकिस्तान भेजकर किसी भी रूप में उसकी अर्थव्यवस्था में योगदान करें? क्योंकि आरोपियों को सौंपने और उन पर कारüवाई के लिए भारत द्वारा तमाम सबूत उपलब्ध करा देने के बाद पाकिस्तान अब तक सबूत का ही राग आलाप रहा है। जबकि वांछित अपराधियों और आतंकी सरगनाओं पर कार्रवाई के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों के अनुरोध पर पाकिस्तान ने कोई कार्रवाई नहीं की है। दुर्योग से अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी अब तक मुंबई आतंकी हमले के मुद्दे पर अपेक्षित दृढ़ता प्रदर्शित नहीं की है। पाक के साथ क्रिकेट मैच पर ऊहापोह को दूर करने के लिए कूटनीतिज्ञ इस बात पर सहमत हुए कि क्रिकेट ही नहीं, पाकिस्तान के साथ तमाम संबंधों की समीक्षा की जाए। जाहिर है, उस दायरे में क्रिकेट भी है। क्योंकि जमीनी स्तर पर युद्ध जीतने से पहले कूटनीतिक स्तर पर विजय के लिए प्रतिपक्षी को अलग-थलग करना बेहद जरूरी होता है।
गृह मंत्री का बयान इस लिहाज से और महत्वपूर्ण है कि भारत ने पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया हुआ है, जबकि पाकिस्तान ने भारत को यह दर्जा तब भी देना जरूरी नहीं समझा, जब संबंध बिल्कुल सामान्य थे। जबकि भारत के साथ व्यापार के मामले में भारत के मुकाबले पाकिस्तान कहीं ज्यादा लाभ कमाता है। सांस्कृतिक मोर्चे पर भी भारत ने पाकिस्तान के कई कलाकारों-लेखकों को स्थायी वीजा दिया हुआ है, जिनमें मरहूम क्रांतिकारी शायर अहमद फराज और गुलाम अली का नाम उल्लेखनीय है। जबकि पाकिस्तान ने विश्व स्तर की सम्मानित गायिका लता मंगेशकर तक को वीजा देने की तकलीफ नहीं उठाई। इन सवालों के घेरे में यह बात भी आती है कि पाकिस्तान हो या कोई अन्य देश, सांस्कृतिक और आर्थिक मामलों में एकपक्षीय और असंतुलित स्थिति बहुत दिनों तक नहीं झेली जा सकती। मुंबई आतंकी हमले के पहले से पाकिस्तान के साथ यह असंतुलन कायम है और इसको दूर करने की दिशा में पाकिस्तानी हुक्मरानों ने कभी ईमानदारी से कोशिश नहीं की। इसके बावजूद कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए भारत जो कर रहा है, उसी की एक कड़ी के रूप में गृह मंत्री के बयान को देखा जाना चाहिए।

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