रविवार, जनवरी 11, 2009

शिबू सोरेन का भयंकर कुर्सी मोह


तमाड़ विधानसभा सीट के उपचुनाव में मिली हार से मुश्किल में फंसे झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के तमाम राजनीतिक हथियार जब नाकाम हो गए और संप्रग की बैठक में अपेक्षित समर्थन मिलने की आशा भी क्षीण हो गई, तब जाकर उन्होंने इस्तीफा देने का संकेत दिया है। चुनाव हारने के बावजूद वे यह दलील देते रहे कि वे दोबारा चुनाव लड़ेंगे और इत्तफाक से जामताड़ा के विधायक विष्णु भैया ने इस्तीफा देकर वहां से गुरुजी को चुनाव की पेशकश भी कर दी। मगर ऐसा लगता है कि संप्रग को सोरने का यह दांव ठीक नहीं लगा, जिसके बाद स्वाभाविक ही उनका सुर बदल गया। झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता का आलम यह कि राज्य ने पिछले तीन सालों में चार मुख्यमंत्री देखे हैं और निर्दलीय विधायकों का वहां ऐसा दबदबा रहा है कि निर्दलीय मधु कौड़ा लगभग दो सालों तक वहां मुख्यमंत्री रह चुके हैं। गौरतलब है कि 2005 में विधानसभा चुनाव के बाद राज्यपाल ने सबसे पहले शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन निर्दलीय विधायकों ने उनका समर्थन नहीं किया, जिसके बाद मजबूरन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।

पिछले साल अगस्त में शिबू सोरेन ने मुख्यमंत्री का पद संभाला था और संविधान के तहत उन्हें छह महीने के अंदर विधानसभा का होना जरूरी है। अमेरिका के साथ परमाणु करार के मसले पर वामपंथी दलों के समर्थन वापसी के बाद केंद्र की संप्रग सरकार को बचाने के एवज में शिबू सोरेन को झारखंड की कुर्सी तोहफे के रूप में मिली थी। राजनीतिक उलटफेर और गुणा-गणित में माहिर गुरुजी के सामने उसी समय से यह बड़ी चुनौती थी कि वे अपने कुनबे को कैसे एकजुट रखते हैं। मगर जब चुनाव में जनता ने उनका सारा हिसाब-किताब बराबर कर दिया, तब भी वे जिस तरीके से कुर्सी बचाने की जुगत भिड़ा रहे हैं, वह लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के लिए शर्मनाक है। यह एक असाधारण स्थिति है, जब राज्य की जनता ने उन्हें विधायक बनने की पात्रता देने से भी इनकार कर दिया है। दूसरी बात यह है कि केंद्र सरकार ने समर्थन देने के एवज में उन्हें मुख्यमंत्री पद का तोहफा देने के लिए तेईस माह पुरानी मधु कौड़ा सरकार को हटाने के लिए जिन तरीकों का अनुसरण किया किया था, उस पर भी राजनीतिक टिप्पणीकारों ने सवाल उठाए थे। जनता के इस फैसले के बाद उचित यही है कि वे पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए ससम्मान ढंग से पद त्याग दें और अगले चुनाव में जाने का धैर्य दिखाएं।

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