फिल्म-संगीत की दुनिया में एक ओर जहां भारत एआर रहमान को गोल्डन ग्लोब अवार्ड मिलने का जश्न मना रहा है, वहीं ऑस्कर अवार्ड के पहले ही दौर से तारे जमीं पर के बाहर हो जाने से भारतीय फिल्म जगत के साथ आम सिने प्रेमियों को भी निराशा हुई है। तारे जमीं पर को भारत की ओर से विदेशी भाषा की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए नामांकित किया गया था और यह सौभाग्य भी इससे पहले केवल तीन फिल्मों की ही मिला था-मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे और लगान को। ऑस्कर अवार्ड्स के इतिहास में ये तीसरा मौका है जब भारत की फिल्म सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्मों की श्रेणी में नामांकित की गई, लेकिन ये दोनों भी ऑस्कर अवार्ड नहीं जीत पाईं। इससे पहले भारत के प्रख्यात फिल्म निर्देशक सत्यजित राय को सिनेमा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए विशेष ऑस्कर सम्मान दिया गया था। ध्यान देने लायक बात यह है कि सिनेमा के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान को मद्देनजर रखते हुए जिन ऑस्कर कमिटी ने उन्हें सम्मानित किया था, उन्हें यह विशिष्ट योगदान उनकी किसी फिल्म विशेष में नजर नहीं आया।
मुंबई फिल्म उद्योग हर साल लगभग 800 फिल्में बनाता है, जबकि हॉलीवुड में महज सौ के आसपास फिल्में बनती हैं। इस समय भारतीय फिल्म उद्योग की अंतरराष्ट्रीय फिल्म बाजार में भागीदारी 3.5 अरब डॉलर की है, जबकि अंतरराष्ट्रीय फिल्म बाजार 300 अरब डॉलर का है। इससे निश्चय ही पश्चिमी फिल्मों के बड़े बाजार का अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन ऑस्कर को लेकर भारतीय जनमानस में यह सवाल उठता है कि ऑस्कर के जो मानदंड हैं, उनके हिसाब से हमारी फिल्मों की गुणवत्ता में कहां कमी रह जाती है? उन कमियों को दूर करने और बेहतरीन फिल्म बनाने के लिए भारतीय फिल्मकार क्यों नहीं ईमानदारी से कोशिश करते हैं? सत्यजीत राय की फिल्म पथेर पांचाली, आगंतुक आदि पूर्वी भारत के लोकक्षेत्र की संवेदना को जिस भाषा और कला-कौशल से सामने लाती हैं, उसे विश्व सिनेमा के किसी भी प्रतिमान पर निर्भीकता से रखा जा सकता है। रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में बेहतरीन कॉस्ट्यूम डिजाइन के लिए अवश्य भानु अथैया को ऑस्कर अवार्ड मिल चुका है, मगर किसी भारतीय फिल्म को ऑस्कर अब तक हासिल नहीं हो सका है। तारे जमीं पर के ऑस्कर की दौर से बाहर हो जाने के बाद फूहड़ मसालेदार फिल्मों को आम जनता की मांग बताकर पल्ला झाड़ने में सिद्धहस्त भारतीय फिल्मकारों को निश्चय ही अब गुणवत्ता, बेहतर पटकथा, तकनीक और भाषा की संवेदनशीलता को लेकर आत्ममंथन करना चाहिए। फिर कोई कारण नहीं है कि हम इस क्षेत्र में बेहतर उपलब्धि हासिल न कर पाएं।
2 टिप्पणियां:
कुछ कहा नहीं जा सकता
---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
विचारणीय आलेख.
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