कठिन है रहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो/बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो/तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है/मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
शुक्रवार, दिसंबर 12, 2008
कफन बेचने वाले से जिंदा छोड़ देने की अपील
कृषि एवं खाद्य संगठन (एफएओ) ने विश्व भर में व्याप्त भुखमरी के बारे में जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके अनुसार खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों के कारण दुनिया में करीब एक अरब लोग भुखमरी के शिकार हैं। दुनिया इस वक्त एक तरफ आर्थिक मंदी से जूझ रही है, तो दूसरी तरफ घटती आमदनी और खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों के कारण विकासशील देशों की एक बड़ी आबादी भुखमरी की समस्या से जूझ रही है। चावल और दालों की कीमतों में हुई बढ़ोत्तरी की वजह से इसी साल 11 करोड़, 90 लाख लोग भुखमरी की स्थिति में आ गए हैं। हेती, फिलीपींस और इथियोपिया जैसे देशों में खाने-पीने की चीजों की आसमान छूती कीमतों की वजह से दंगे हुए हैं। भारत ने बढ़ती कीमतों की मार से गरीब जनता को बचाने के लिए निर्यातों पर कुछ हद तक प्रतिबंध लगाए, इसके कारण आयातक देशों में कीमतें बढ़ने लगीं। ये सच है कि संकट की मुख्य वजह मांग और आपूर्ति में बढ़ता फासला है, लेकिन सवाल यह है कि पिछले तीस सालों में खाने-पीने की चीजों के दाम इतनी ऊंचाई पर कभी क्यों नहीं पहुंचे? जब आर्थिक उन्नति के दिन थे, तब तो सहायता जुटाना कठिन होता था, लेकिन अब तो दुनिया बेहद कठिन दौर से गुजर रही है। गरीबों की अब कौन सुने, जब अमीरों की हालत खुद ही खराब है. स्थिति यह है कि दानदाता देश आर्थिक संकट का हवाला देकर अब गरीब देशों को आगे सहायता देने में असमर्थता जाहिर कर सकते हैं। जिससे गरीबी और भुखमरी से पहले से ही काफी परेशान लोगों के आगे और अधिक उपेक्षित होने की आशंका गहराती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी पर गौर करें, तो वर्तमान आर्थिक संकट से गरीब देश सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं और लगभग 50 ऐसे देशों के लिए खतरा सबसे अधिक है, जो केवल कुछ उत्पादों के निर्यात पर निर्भर रहते हैं। गौरतलब है कि अभी दुनिया में दो किस्म के गरीब देश हैं-एक वे जिनके पास तेल और गैस है और एक वैसे देश जिनके पास तेल-गैस नहीं है। गरीब देशों में इधर विकास भी हुआ, लेकिन ये विकास लगभग पूरी तरह केंद्रित रही केवल तेल और खनिज के निर्यात करने वाले देशों के लिए जिनमें अंगोला, सूडान और इक्वेटोरियल गिनी जैसे देश आते हैं। मगर दूसरे कमजोर देशों में इस बात का खतरा अधिक है कि अगर ऊर्जा के स्रोत और खाद्यान्न महंगे होत चले गए तो और संकट में घिर जाएंगे। गरीब देशों की स्थिति में व्यापक सुधार न होने की एक अहम वजह यह भी है कि विदेशों से जो सहायता दी जाती है, वह सहायता मुख्य रूप से सामाजिक परिवर्तनों के लिए दी जा रही है, न कि गरीब देशों के संरचनात्मक बदलावों के लिए या ऐसे कामों के लिए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता और आमदनी बढ़ सके। इसलिए दुनिया इस वक्त जिस भयंकर मंदी के दौर से गुजर रही है उसमें भुखमरी जैसी समस्या से निपटने के लिए व्यापक मानवीय दृष्टि के साथ-साथ धैर्य से वैकल्पिक विकास नीति की ओर अग्रसर होने की जरूरत अब पूरी दुनिया में महसूस की जा रही है।बकौल साहिर लुधियानवी, कफन बेचने वालों से हम जान की भीख मांग रहे हैं, जिन्होंने दुनिया में यह हालत पैदा की है।
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