बुधवार, दिसंबर 31, 2008

अतीत होते साल का विदागीत


समय बीतता चला जाता है और पता ही नहीं चलता कि कब साल पूरा हो गया। पिछले एक साल के घटनाचक्रों पर नजर डालें, तो अहसास होता है कि बीतते हुए वक्त के दरम्यान लम्हा-लम्हा दुनिया बदलती रही और एक नई शक्ल अख्तियार करती गई। 2008 का आज आखिरी दिन है और इस दिन जब हम पूरे साल पर नजर डालते हैं, तो इस साल कई ऐसी घटनाएं हुई, जिनकी अनुगूंज अगले साल तक सुनाई देगी। 2008 का आगाज बेहद उत्साह और उम्मीदों भरा रहा और सेंसेक्स जिस ऊंचाई पर था, डॉलर की तुलना में रुपये की स्थिति मजूबत थी। निजी क्षेत्र में काबिल लोगों के लिए रोजगार के अवसरों की कोई कमी नहीं थी और प्रतिष्ठित संस्थानों के छात्रों को कैंपस सलेक्शन में लाखों रुपये की नौकरी का ऑफर आराम से मिल रहा था। इक्के-दुक्के घटनाओं को छोड़कर साल के शुरुआती छह महीनों में संयोग से दिल दहला देनेवाली बड़ी आतंकवादी घटनाएं कम हुई।

यह भी एक अजीब संयोग है कि इस साल के आखिरी छह महीने बेहद त्रासद, हौलनाक और वैश्विक स्तर पर हर काफी झटके वाला साबित हुआ। लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया घोषित होने के बाद बड़ी सरकारी मदद की घोषणा के बाद भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की शिकार हो गई और उसके दुष्प्रभाव का असर पूरी दुनिया के बाजारों और अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा। नवंबर के आखिरी सप्ताह में हुए मुंबई हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया और इस हमले के बाद पाकिस्तान के साथ रिश्तों में बेहद तनाव तल्खी पैदा हो गई। मिले-जुले प्रभावों का असर हालांकि साल के आखिरी छह महीनों में भी रहा और इसी कड़ी में इस वर्ष पहला मानवरहित चंद्रयान-1 शुरुआत के साथ ही भारत अंतरिक्ष अनुसंधान की नई पीढ़ी में प्रवेश कर गया। ऐसे कम ही देश हैं जो अंतरिक्ष कार्यक्रम को लेकर ऐसी उपलब्धि हासिल कर सके हैं। काफी उतार-चढ़ाव के बाद आखिरकार भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु करार परवान चढ़ा। साल के उत्तराद्र्ध में ही बिहार में आई बाढ़ की भयंकर विनाशलीला से सोलह जिले बुरी तरह प्रभावित हुए और इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया। जबकि जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को चालीस हेक्टेयर जमीन देने के मामले ने इतना तूल पकड़ लिया कि घाटी और जम्मू में कई हफ्तों तक पक्ष-विपक्ष में विरोध प्रदर्शन होते रहे। अगले वर्ष की जीवन-यात्रा में हमारे साथ भूतपूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, माक्र्सवादी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत और भारत के लिए कई युद्धों में निर्णायक भूमिका निभाने वाले फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ भी नहीं रहे। यह वर्ष कल से अतीत हो जाएगा और अतीत की सीख हमेशा वर्तमान को बेहतर बनाने में मददगार साबित होती हैं।

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