सोमवार, दिसंबर 22, 2008

मृत्यु के बारे में अख्तरुल ईमान के कुछ शब्द-


बड़े भाई यादवेंद्र जी, जिनसे मुलाकात कब घनिष्ठता में बदल गई यह याद भी नहीं. प्रतिष्ठित संस्थान सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, में उप निदेशक के पद पर कार्य करते हैं, कविता को पढ़ते-गुनते और जीते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि किसी भी तरह के अहंकार की यह हिम्मत नहीं कि उन्हें जरा भी छू ले. बेहद सहज, सरल और मित्रवत्सल हैं. कुछ दिनों पहले उन्होंने यह नज्म मुझे एसएमएस किया था, चाहता हूं कि आप भी इसे पढ़ें।



कौन आया है जरा एक नजर देख तो लो,

क्या खबर वक्त दबे पांव चला आया हो

जलजला, उफ ये धमाका, ये मुसलसल दस्तक

खटखटाता कोई देर से दरवाजे को

उफ ये मजमून फजाओं का अलमनाक सुबूत

कौन आया है जरा एक नजर देख तो लो

तोड़ डालेगा ये कमबख्त मकान की दीवार

और मैं दब के इसी ढेर में रह जाऊंगा.


चयन एवं सौजन्यः यादवेंद्र

4 टिप्‍पणियां:

batkahi ने कहा…

priy sathi,
ek bhul sudhar jaldi kar den..main roorkee me kam karta hun,par iit me nahi padhata.roorkee me hi ek rashtriy shodh sansthan hai central building research institute(cbri),usme main deputy director ke pad par kam karta hun...vaigyanik kamo ke alawa jinda rahne ke liye rawani dhundta rahta hun...aur isi yatra me aap jaise mitr sath mil jate hain...baki ka safar sajha ho jata hai...

yadvendra

Pankaj Parashar ने कहा…

aapne jaisa kahan wah sudhar kar diya hai.

शिरीष कुमार मौर्य ने कहा…

यादवेन्द्र जी वाकई बहुत सहज हैं। वे हमसे बड़े हैं पर कभी बड़प्पन जाहिर नहीं होने देते। उनसे मित्रता जो एहसास झरता है हंम पर उसे शब्दों कह सकना शायद मुमकिन नहीं।
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और हां !
पंकज भाई आपसे गुजारिश है कि कमेंट की सेटिंग में जाकर कृपया शब्द पुष्टिकरण हटा दें, वह निरर्थक है और टिप्पणी देने में बाधा बनता है।

yehsilsila ने कहा…

अच्छा लगा, बधाई… - अरविन्द श्रीवास्तव, सहरसा से-