शुक्रवार, दिसंबर 26, 2008

इस मर्ज की दवा क्या है?

उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर मनोज कुमार गुप्ता की जिस निर्ममता से की गई, वह बेहद लोमहर्षक है। मृत इंजीनियर के परिजनों ने सत्ताधारी विधायक शेखर तिवारी और उनके समर्थकों पर आरोप लगाया है कि काफी दिनों से उनसे चंदे के रूप में एक मोटी रकम की मांग की जा रही थी, जो पूरी न किए जाने के कारण उनकी जघन्य हत्या की गई। उत्तर प्रदेश के इंजीनियर एसोसिएशन ने सत्ता से जुड़े विधायकों पर डराने-धमकाने और जबरन वसूली करने का जो आरोप लगया है, उसको विपक्षी दल मुखर होकर कह रहे हैं। हालांकि विधायक की गिरफ्तारी और कुछ पुलिसकर्मियों के निलंबन से रा’य सरकार अपनी सक्रियता दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन ऊपर से नीचे तक चंदे के नाम पर राजनीतिक निरंकुशता का जो भयावह तांडव चल रहा है, उस पर फिलहाल कोई बात नहीं हो रही है।


बेहद क्षोभ की बात है कि सत्ता के नशे में चूर नेताओं की निरंकुश राजनीति की यह शैली कोई नई नहीं है। पिछले ही साल बसपा के एक सांसद ने अपने क्षेत्र में रातोरात कई दुकानों पर बुलडोजर चलवा दिया था और विरोध कर रहे दुकानदारों पर फायरिंग करवाई थी। मुलायम राज में एक पुलिस अधिकारी को राजधानी लखनऊ में कुछ नेता पुत्रों ने जीप के बोनट पर शहर भर में घुमाया था। लगभग डेढ़ दशक पूर्व बिहार के गोपालगंज जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या इसी तरह पीट-पीटकर आनंद मोहन के नेतृत्व में की गई थी। दुर्भाग्य से कई-कई हत्याओं का मुकदमा झेल रहे आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों के राजनीति में आने के बाद से ऐसी ढेरों मिसालें कायम हुई हैं। जो विधायिका कानून बनाने का अधिकार रखती है, उसमें कानून को हाथ में लेने वाले लोगों की बढ़ती हुई संख्या को ध्यान में रखकर डेढ़ दशक पहले वोहरा कमिटी की रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी गई थी, लेकिन वह रिपोर्ट आज तक ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।


दिक्कततलब बात यह है कि आज कमोबेश हर दल में आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसद और विधायक हैं। इसलिए वोहरा कमिटी की रिपोर्ट पर दोबारा विचार करने की जरूरत किसी राजनीतिक दल ने आज तक महसूस नहीं की। औरैया की इस घटना के बाद भी यदि राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं की बढ़ती संख्या पर विचार नहीं करते हैं, तो लोकतंत्र के लिए यह बेहद अशुभ संकेत है।

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