गुरुवार, दिसंबर 25, 2008

बुर्जुआ की तरह जनता और प्रेस का गला न दबाएं

लगभग डेढ़ दशक तक चली राजनीतिक उथल-पुथल के बाद नेपाल में लोकतांत्रिक सरकार से यह उम्मीद की जा रही थी कि अब वहां मीडिया और नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेहतर रूप में हासिल होगी। मगर आलोचना को स्वस्थ रूप में लेने और अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करने की जगह माओवादी सक्रियताविदयों ने अपनी सरकार की आलोचना करने वाली कुछ खबरें छापने की वजह से वहां के एक प्रमुख अखबार के पत्रकारों और दफ्तर पर हमले किए। जिसके विरोधस्वरूप नेपाल के सैकड़ों पत्रकारों ने राजधानी काठमांडू में हमले के विरोध में रैलियां निकालीं और अंग्रेजी और नेपाली के तमाम अखबारों ने संपादकीय की जगह खाली छोड़ दी। नेपाल के प्रमुख राजनीतिक दल, संयुक्त राष्ट्र संघ और मीडिया की स्वतंत्रता के हिमायती दलों ने इन हमलों के लिए माओवादियों की तीव्र भर्त्सना की है। अपनी आलोचना से चिढ़कर पहले भी माओवादियों ने प्रकाशन कार्यालयों को आग लगाई थी और वितरण को अवरुद्ध करके अपना गुस्सा जाहिर किया था।


हालांकि माओवादी पार्टी के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल उर्फ प्रचंड ने इन हमलों में अपनी पार्टी की भूमिका से इनकार किया है और उन लोगों को दोषी बताया है, जो अपने आपको माओवादी बता कर पार्टी को बदनाम कर रहे हैं। इन हमलों की जांच कराने का आश्वासन देते हुए उन्होंने वचन दिया है कि अपराधियों को दंडित किया जाएगा। प्रचंड सरकार बनने से पहले ही नेपाली मीडिया में यह एक गंभीर मुद्दा था कि सैकड़ों माओवादी गुरिल्लों को सेना में शामिल किया जाए या नहीं? दूसरा यह कि यदि उन्हें सेना में शामिल किया गया तो क्या वे अपनी पार्टी लाइन से अलग हटकर निष्पक्ष तरीके से कामकाज कर पाएंगे? अपने निरंकुश कार्यकर्ताओं से माओवादी सरकार क्या निष्पक्ष तरीके से निपटेगी? क्योंकि आंदोलन चलाना उसका नेतृत्व करना एक बात है, जबकि सरकार चलाना बिल्कुल दूसरी बात। इनका एहसास स्वयं प्रधानमंत्री प्रचंड को है और हाल ही में उन्होंने कहा था कि सरकार चलाना आसान काम नहीं है। लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता में आई माओवादी सरकार यदि अपने कार्यकर्ताओं की ऐसी हरकतों से सख्ती से निपटेगी तो यह नेपाल की स्थिरता और नवजात गणतांत्रिक व्यवस्था, दोनों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।

2 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप ने सही मुद्दा उठाया है। एक बार सरकार में आने के बाद अपने गुरिल्लाओ को काबू में रखने की जिम्मेदारी माओवादियों की है। पार्टी के जरिए नियंत्रण नहीं रख पाने पर सरकार को कदम उठाने होंगे और यह माओवादियों के लिए अच्छा नहीं होगा।

अपने ब्लाग से शब्द पुष्टिकरण हटाएँ। वरना
टिप्पणियों का अकाल रहेगा।

Pankaj Parashar ने कहा…

भाई दिनेश राय द्विवेदी और शिरीष मौर्य जी,
आप लोगों का आदेश सिर-माथे। शब्द पुष्टिकरण हटा दिया है. उम्मीद है अब शिकायत नहीं रहेगी।