रविवार, जनवरी 04, 2009

चारों तरफ से भारत को अशांत और असुरक्षित बनाने की रणनीति


नए वर्ष की शुरुआत में ही पूर्वोत्तर राज्य असम के गुवाहाटी शहर में सिलसिलेवार बम धमाके ने एक बार फिर इस शहर को दहलाकर रख दिया है। पिछले वर्ष अक्तूबर में गुवाहाटी और आसपास के इलाकों में हुए धमाके में लगभग अस्सी से ज्यादा मासूम नागरिक मारे गए थे। त्रिपुरा के अगरतला और मणिपुर के इंफाल में हुए बम विस्फोटों के बाद खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों की चिंता बढ़ गई है। पिछले साल अक्तूबर महीने में आतंकियों ने पूर्वोत्तर के अनेक राज्यों को निशाना बनाकर सुरक्षा व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी थी। दिल्ली, मुंबई, जयपुर, अहमदाबाद, बंगलुरु के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में बम धमाके के बाद ऐसा लगता है कि आतंकियों ने चारों तरफ से भारत को अशांत और असुरक्षित बनाने की रणनीति अपना ली है। असम में जातीय संघर्ष और उल्फा की उग्रवादी गतिविधियों के कारण वैसे तो पहले से ही वहां सेना तैनात है, मगर इधर हुए हमलों में हूजी, हरकत-उल-जेहादी-ए-इस्लामी नामक आतंकी संगठन की करतूतें उजागर हो रही हैं। उल्फा के आतंकी बांग्लादेश को ठिकाना बनाकर लगातार भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। इन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में बांग्लादेश के असहयोग के कारण अब तक हमें सफलता नहीं मिल पा रही थी, मगर अब बांग्लादेश की नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद से अपेक्षित सहयोग मिलने की आशा की जा सकती है। यह उचित मौका है जब कूटनीतिक स्तर पर दबाव बनाकर भारत बांग्लादेश की नई प्रधानमंत्री को उल्फा समेत वहां शरण लेने वाले अन्य संगठनों के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए राजी कर सकता है।


ताजा बम धमाके के संदर्भ में महत्वपूर्ण यह है कि ये धमाके गुवाहाटी के भीड़-भाड़ वाले इलाकों में केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम की असम यात्रा से ठीक पहले हुए। गृहमंत्री ने खुफिया एजेंसियों के बीच जानकारियों के आदान-प्रदान के मामले में तालमेल और निगरानी एजेंसी की बेहतर कार्य-प्रणाली को लेकर एक महत्वपूर्ण पहल की है। दूसरी बात यह है कि खुफिया जानकारियां मिलने के बावजूद यदि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने वाली एजेंसियां कारगर नहीं साबित हो रही हैं तो इसकी तमाम खामियों को दुरुस्त करना सबसे पहली और बड़ी जिम्मेदारी है। चिंताजनक बात यह है कि अलग-अलग मुद्दे और लक्ष्य के बावजूद पूर्वोत्तर में सक्रिय तमाम आतंकवादियों के बीच कहीं न कहीं एक तरह का तालमेल दिखाई देता है, जबकि सरकारी तंत्रों के बीच बेहतर समन्वय नहीं दिखता। पूर्वोत्तर में हुए बम धमाकों के बाद यह बेहद जरूरी हो गया है कि आतंकवाद से मुकाबले के लिए रणनीतिक स्तर सरकार कारगर तालमेल पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित करे।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आजादी के बाद भारत में जितनी भी सरकारें बनी उनके सोच का दायरा कभी भी पूरे भारत को आत्मसात नहीं कर सका. इस कारण ऐसे अनेक इलाके और वर्ग अपेक्षित रह गए जिन्हें पड़ोसी देशों ने भारत के ख़िलाफ़ भड़काया. आज ऐसे सारे इलाके और वहां के अधिकाँश नागरिक भारत के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़े हुए हैं. पड़ोसी देश भारत के नागरिकों को हो भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्हें हथियार और उचित प्रशिक्षण दे कर भारत के लिए एक समस्या बना दिया है. अफ़सोस की बात यह है कि सरकारें फ़िर भी नहीं चेतीं और समस्या को और उलझती रहीं. आज की सरकार का भी यही हाल है.

अगर हम कमजोर हैं तब सब हमारी कमजोरी का फायदा उठाएंगे. तुष्टिकरण की नीति किसी भी देश के लिए एक ऐसी कमजोरी है जो हमेशा समाज और देश को नुकसान पहुंचाती रहेगी. भारत के नागरिकों को इन सरकारों ने इतने वर्गों में बाँट दिया है कि कोई स्वयं को भारतीय के रूप में देखता ही नहीं. राष्ट्रीय हित संकुचित होकर निजी हितों में सिमट गया है. सरकारों और राजनितिक दलों के सोच और व्यवहार का भारतीयकरण होना जरूरी है, बिना उस के देश का भला नहीं हो सकता. भारत कभी आतंकवाद पर काबू नहीं पा सकता.

Unknown ने कहा…

एक नज़र इस पर डाल लीजिये भाई… विस्तार से बताया है इसमें…
http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2008/11/mugalistan-and-red-corridor-threat-to_08.html